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________________ १७६/पार्श्वपुराण ध्यानारूढ़ थे उसे धरणेन्द्र ने अपने शिर पर उठा लिया / पद्मावतीने उन्हें नमस्कार किया और धरणेन्द्रने उनकी रक्षाके भावसे अपना फण फैलाकर छत्ता तान दिया, पर भगवान ध्यान में डूबते गये और चार घातियां कर्मों को नष्ट कर केवलज्ञान प्राप्त किया / उस संवरदेव ने यह हाल देखा तो भागा जी छोड़ कर / भगवान को केवलज्ञान होते ही सारे उपसर्ग समाप्त हो गये / नौवा अधिकार इन्द्रों के आसन कम्पायमान हुए। उन्होंने अवधिज्ञान से जाना और जिस दिशा में भगवान विराजमान थे सात पैर चल कर उन्हें परोक्ष नमस्कार किया / तत्क्षण कुबेर को समोशरण की रचना के लिए आदेश दिया / उसने समोशरण की बड़ी सुन्दर रचना की / जिसमें बारह सभाएँ थी / गंधकुटी बीच में थी / जिस पर रत्नों का सिंहासन था / तीन छत्र, चौसठ चमर आदि अष्ट प्रातिहार्य उपलब्ध थे / मुनि, आर्यिका , देव, देवियां, नर, नारियां और पशु एक साथ बैठ कर भगवान की दिव्यध्वनि सुन, धर्म के स्वरूप को समझ रहे थे / भगवान का सात तत्त्व , नव पदार्थ, षट् द्रव्य, पंचास्तिकाय आदि जैन सिद्धान्त अनेकान्त रूप से तत्व के निर्णय पर सारगर्भित उपदेश हुआ / कई वर्षों तक उपदेश देते हुए जीवों के कल्याण का मार्ग प्रशस्त किया / पश्चात् शिखर सम्मेद पर्वत पर पहुंच कर योगनिरोध करते हुए श्रावण शुक्ल सप्तमी को निर्वाण प्राप्त किया / इनके जीवन की विशेषता यह रही कि 10 भव तक एक तरफा वैर चलता रहा / कमठ दसभव तक वैर भंजाता रहा पर पार्श्वनाथ ने किसी भी भव में अपनी ओर से कमठ के जीव को सताने का भाव नहीं बनाया / - पं. कमलकुमार शास्त्री Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002686
Book TitleParshvapurana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhudhardas Kavi, Nathuram Premi
PublisherSanmati Trust Mumbai
Publication Year2001
Total Pages175
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size6 MB
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