________________ /175 कहां है सर्प का जोड़ा ? यूं कहकर ज्योंही उसने उस लकड़ी को फाड़ा उसमें से अधजले नाग नागनी का जोड़ा निकला / जो मरणासन्न था / पार्श्वकुमार ने उस नाग के जोड़े को णमोकार मंत्र सुनाया | धर्म का उपदेश दिया / उन दोनों नाग-नागनी ने शान्तिपूर्वक प्राण त्याग दिए और स्वर्ग में धरणेन्द्र-पद्मावती हुए / पार्श्वकुमार घर वापिस आकर विचारों में खो गये / इन्हें संसार की क्षणभंगुरता साफ नजर आने लगी और उनके कदम वैराग्य की और बढ़ने लगे / वे बारह भावनाओं का चिंतन करने लगे / उसी समय लौकान्तिक देव महल में आकर पार्श्वकुमार की भावनाओं का अनुमोदन करते हुए कहने लगे: धन्य है धन्य है प्रभु ! आप का यह सुन्दर विचार समयानुकूल है / आपने यह ठीक ही सोचा है / गृह त्याग कर ही सच्चा सुख खोजा जा सकता है / उसी समय प्रथम इन्द्र स्वर्ग से एक सुन्दर पालकी लाये | चारों स्वर्गों के इन्द्र एकत्र होकर पार्श्वनाथ का दीक्षाकल्याणक मनाने की तैयारी करने लगे / पार्श्वकुमार पालकी में आरूढ़ हुए / सबसे पहले नगर-निवासियों, राजा-महाराजों ने पालकी अपने कन्धों पर उठाई / कुछ दूर चलने पर देवों ने पालकी ले ली और अश्ववन की ओर ले चले / बन में पहुंच कर पार्श्वकुमार ने पालकी से उतर कर अपने राजकीय वस्त्राभूषण उतार डाले / केशलुंच किए / इन्द्रों ने उनकी पूजन की / पार्श्वनाथ वट-वृक्ष के नीचे बैठ कर ध्यान में लीन हो गये / आठवाँ अधिकार कुछ समय बाद मुनि पार्श्वनाथ वहां से विहार करके गुजर खेटपुर नगर पहंचे / वहां के राजा ब्रह्मदत्तने मुनिराज को आहारदान दिया / पश्चात् मुनिराज आगे को विहार कर गये / एक वन में पत्थर की एक स्वच्छ शिला पर बैठ कर ध्यान करने लगे / इसी समय वह तापिसी जो अज्ञान तप कर रहा था, आयु पूर्ण कर स्वर्ग में संवर नाम का देव हुआ / एक दिन वह संवर देव अपने विमान में बैठा हुआ वहां से निकला जहां पार्श्वनाथ शिला पर ध्यान कर रहे थे / उसका विमान ठीक उनके उपर जा रहा था रुक गया / उसने सोचा क्या बात है। यकायक विमान क्यों रुक गया / नीचे झांक कर देखा कि नीचे कोई तपस्वी बैठा है / उसने ही मेरे विमान को रोक दिया है / ऐसा नियम है कि तद्भव मोक्षगामी के ऊपर से लांघ कर कोई निकल नहीं सकता / पर उस देव को क्या मालूम ? वह क्रोधाभिभूत होकर भयानक उपसर्ग करने लगा / अपनी माया से उसने पत्थर-कंकड़ बरसाये / आंधी तूफान चलाया / घनघोर वर्षा होने लगी / यहां तक कि पानी छाती से ऊपर तक बहने लगा / उसी समय वे नाग-नागनी जो धरणेन्द्र पद्मावती हुए थे, तत्काल वहाँ आये और जिस शिला पर पार्श्वनाथ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org