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ग्यानअंस चाखा भई ऐसी अभिलाखा अब, करूं जोरि भाखा जिनपारसपुरानकी ॥ २२॥ आगें जैनग्रंथनिके करता कवींद्र भये, करी देवभाषा महाबुद्धिफल लीनों है । अच्छरमिताई तथा अर्थकी गभीरताई, पदललिताई जहां आई रीति तीनों है | कालके प्रभाव तिन ग्रंथनिके पाठी अब, दीसत अलप ऐसो, आयौ दिन हीनों है । तातैं इह समै जोग पढ़ें बालबुद्धि लोग, पारसपुरानपाठ भाषाबद्ध कीनों है || २३॥
दोहा | सक्तिभक्तिबल कविनपै, जिनगुन बरनैं जाहिं || मैं अब बरनौं भक्तिवस, सक्ति भूल मुझ नाहिं ||२४||
वरनौं पूरवकथितक्रम, ग्रंथअर्थ अवधारि ॥ सुगमरुप संछेपसौं, सुनौ सबहि नरनारि ||२५||
चौपाई |
मगधदेस देसनि परधान । राजगृही नगरी सुभथान ॥ राज करै निक भूपाल । नीतवंत नृप पुन्यविसाल ||२६||
छायक-सभ्यकदरसनसार । रूप सील सबगुनआधार ॥ तिनके घर अंतेवर घना । पटरानी रानी चेलना ||२७ ॥
पीठिका /१५
जाके गुन बरनत बहु भाय । बिरिया लगै कथा बढ़ि जाय ।। एक दिना निज सभा नरेस । निवसै जैसैं सुरग-सुरेस ||२८|| रोमांचित बनपालक ताम । आय राय प्रति कियौ प्रनाम ॥ छह रितुके फल फूल अनूप । आगैं घरे अनूपमरूप ॥२९॥ हाथ जोरि बिनवै बनपाल । विपुलाचल पर्वतके भाल II वर्द्धमान तीर्थंकर आप । आये राजन- पुन्यप्रताप ||३०||
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