________________
१३२/पार्श्वपुराण नौवाँ अधिकार
भगवान निर्वाण गमन वर्णन |
सोरठा । पारस प्रभुको नाउँ, सार सुधारस जगतमैं || मैं याकी बलि जाउँ, अजर-अमर-पदमूल यह ।।१।।
दोहा । बारह सभा सुथानमधि, यों प्रभु आनंदहेत ।। जथा कमलिनीखंडकौं, ससिमंडल सुख देत ||२|| विकसितमुख सुर नर सकल, जिनसन्मुख करजोर ।। निवसैं प्यासे अमृतधुनि, ज्यौं चातक घनओर ||३||
चौपाई। तब-गनराज स्वयंभू नाम | चार ग्यानधारी गुनधाम || करि प्रनाम पारसप्रभु ओर, विनती करी करांजुलि जोर ||४|| भो स्वामी त्रिभुवनघर येह । मिथ्या-तिमिर छयौ अति जेह ।। भूले जीव भमै तामाहिं । हितअनहित कछु सूझै नाहिं ।।५।। श्रीजिनवानी दीपक-लोय । ता बिन तहां उदोत न होय || तातें करुनानिधि स्वयमेव । करि उपदेस अनुग्रह देव ।।६।। जानन जोग कहा है ईस । गहन जोग सो कह जगदीस || त्यागन जोग कहो भगवान । तुम सबदरसी पुरुष प्रमान ||७|| कैसे जीव नरकमैं परै । क्यों पसुजोनि पाय दुख भरै ।। काहेसौं उपजै सुरलोय | कौन कर्मतैं मानुष होय ||८|| कौन पापफल जनमै अंध । बहरा कौन क्रिया-सम्बन्ध ।। किस अघ उदय होय नर पंग | गूंगा किस पातक-परसंग ।।९।। कौन पुन्यतें दरव अतीव | क्यों यह होय दरिद्री जीव ।। पुरुष-वेद किस कर्म उदोत । नारि नपुंसक किस बिध होत ||१०||
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org