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सातवाँ अधिकार/११३
यह भव दुस्तर पारावार । दुख-जल-पूरित वार न पार || प्रभु-उपदेस-पोत चढ़ि धीर । अब सुखसौं जैहैं जग तीर ||११४।। सिवपुरि पौर भरम-पट जहां । मोह मुहर दिढ़ कीनी तहां ।। तुम वानी कूची कर धार । अब भवि जीव लहैं पयसार ||११५|| स्वयंबुद्ध बोधन-समरत्थ । तुम पर प्रतिबुध वचन अकत्थ || ज्यों सूरज आगे जिनराज । दीप दिखावन है बेकाज ||११६॥ हम नियोग औसर यह भाय । तातें करें वीनती आय || धरिये देव महाव्रत भार | करिये कर्म-सत्रु संघार ||११७।। हरिये भरम तिमिर सर्वथा । सूझै सुरग-मुकति-पथ जथा || यों थुति करि बहुभाव दिढ़ाय | बारबार चरनन सिर नाय ||११८॥ साधि नियोग गये निजथान । लोकांतिक सुर बड़े सयान ।। अब चौबिध इंद्रादिक देव । चढ़ि निज निज बाहन बहभेव ||११९।। हर्षितउर परिवार समेत । आये तृतिय कल्यानक हेत ।। सुर वनिता नाचैं रस भरी | गावै मधुर गीत किन्नरी ।।१२०।। बाजे विबिध बजै तिस बार | करै अमरगन जय जय कार || सोवन-कलस भरे सुरराय । विमल छीरसागर-जल लाय ||१२१।। हेमासन थापे जिनराय । उच्छव सहित न्हौन-बिधि ठाय ।। भूषन वसन सकल पहिराय | चंदन-चर्चित कीनी काय ||१२२|| इस औसर प्रभु सोहैं एम | मोखबधूवर दूलह जेम ।। कहि वैराग वचन जिन तबै । प्रतिबोधे परिजन जन सबै ।।१२३।। अति हठसौं समझाई माय । लोचन भरे वदन विलखाय || विमला नाम पालकी साज । आनी इंद्र चढ़े जिनराज ||१२४।। पहले भूमिगोचरी राय । सात पैंड़ लीनी सुखदाय ।। फिर विद्याधर राजा भले । पैंड़ सात ही ते ले चले ॥१२५।। पी0 इंद्रादिक सुरसंघ । कांधै धरी चले पुर लंघ || . ना अति निकट न दीसै दूर | नभ मारग देखें जन भूर ||१२६।।
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