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१०६/पार्श्वपुराण
सत-संवत्सर आव प्रमान । अतुल असाधारन गुनथान || सत्रु मित्र ऊपर समभाव । दया-सरोवर सोम-सुभाव ||३१|| सागरसौं प्रभु अति गंभीर | मेरुसिखरसौं अधिकै धीर || कांति देखि लाजै मिरगांक | तेज बिलोकि छिपै रवि रांक ||३२|| कल्पविरछसौं अधिक उदार | तिहुं-जगआसा पूरनहार || यौं जिनगुनकौं उपमा कहीं । तीनकाल त्रिभुवनमैं नहीं ।।३३।।
दोहा । यों सुख निवसत पास जिन, सेवत कमला पाय || सोलह बरस प्रमान प्रभु, भये जगत-सुखदाय ||३४|| सभा सिंहासन एक दिन , बैठे सहज जिनेंद्र ।। सुर-नरमैं प्रभु यौं दिपैं, ज्यों उड़गनमैं चंद्र ||३५।। अस्वसेन भूपाल तब, बोले अवसर पाय | नेह-सलिल भीजे वचन, सुनो कुमर जगराय ||३६।। एक राजकन्या बरो, करो उचित व्यवहार || बंसबेल आगे चलै, सुख पावै परिवार ||३७|| नाभिराजकी आस ज्यौं, भरी प्रथम अवतार || तथा हमारी कामना, पूरन करो कुमार ||३८॥ पिता वचन सुनि प्रभु दियौ, प्रतिउत्तर तिहिं बार || रिषभदेव सम मैं नहीं, देखौ हिये विचार ||३९।। मेरी सब सौ वर्ष थिति, सोलह भये बितीत ॥ . तीस वर्ष संजम समय, फिर मत कहो पुनीत ।।४०।। अल्पकाल थिति अल्प सुख, अल्प प्रयोजन काज || कौन उपद्रव संग्रहै, समुझि देख नरराज ||४१।। सुन नरेंद्र लोचन भरे, रहे वदन बिलखाय ।। पुत्र ब्याह-वर्जन वचन, किसे नहीं दुखदाय ॥४२।।
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