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________________ सातवाँ अधिकार भगवत् वैराग्य प्राप्त दीक्षा कल्याणक वर्णन | दोहा | पारस प्रभु तजि औरकौं, जे नर पूजनजाहिं || कलपबिरछकौं छांड़िकें, बैठें थूहर छाहिं ||१|| चौपाई | अब जिन बालचंद्रमा बढ़े । कोमल हास - किरन मुख क छिन छिन तात-मात-मन हरै । सुखसमुद्र दिन दिन विस्तरै ॥२॥ अम्रत इंद्र अंगूठे देय । वही पोष पयपान न लेय ॥ देवी धाय हरष मन धरैं । मज्जन-मंडन - बिधि सब करें ॥३॥ केई मनिभूषन पहराय । करैं अलंकृत प्रभुकी काय ।। केई कामिनि करैं सिंगार । श्रीमुखचंद्र निहार निहार ||४|| केई रहसवती तिय आय । हस्त- कमलसौं लेंय उठाय || मनिमय आंगन- मांझ अनूप । बिचरैं जिनपति बालसरूप ||५॥ / १०३ बहुबिध देवकुमार मनोग । बालकरूप भये वयजोग || घुटियां गमन करें तिनसाथ । ज्यों नछत्रगन मैं निसि - नाथ ||६ ॥ कबहीं सैनासन सोवंत । ऊपर दिढ़ जिन यौं जोवंत ॥ अौं मुक्ति मो केतक परैं । मानौं यह संका मन धरै ||७|| कबहीं पुहुमीपै जिनराय । कंपित चरन ठवें इहि भाय || सहै कि ना धरती मुझभार । संकैं उर उपमा यह धार ॥८॥ कबहीं स्वामि उझकि उठि चलें । विकसत मुख सब दुखकौं दलें ॥ बांधै मुठी अटपटे पाय । कैसे वह छबि बरनी जाय ||९|| कबहीं रतन-भीतमैं रूप |झलकै ताहि गहैं जगभूप ॥ जिनसौं जिन न मिलें सर्वथा । करत किधौं कहवत यह वृथा ||१०|| Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002686
Book TitleParshvapurana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhudhardas Kavi, Nathuram Premi
PublisherSanmati Trust Mumbai
Publication Year2001
Total Pages175
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size6 MB
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