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हरषत सब पुरजन परिवार । घर घर भये मंगलाचार || घर घर कामिनि गावैं गीत | घर घर होंय निरत-संगीत ||१०६|| मंगलीक बाजे बहु भेव । बाजन लगे सकल सुखदेव || श्रीजिनभवन न्हौन विस्तार किये सकल मंगल आचार ||१०७|| छिरक्यौ चंदन नगर मंझार । रतन साथिया धरे संवार || जाचक-दान सुजन - सनमान । जथाजोग सब रीति-विधान ||१०८|| इहि बिध अस्वसेन नरनाह । कीनौ पुत्र-जनम उच्छाह ।। पूरन - आस भये सब लोय । दुखी दीन दीखै नहिं कोय ||१०९ ||
छठा अधिकार/ २०१
दोहा ।
उदय भयौ जिन चंद्रमा, कुल नभ-तिलक महंत ॥ सुख-समुद्र बेला तजी, बढ्यौ लोक-परजंत ॥११०॥
चौपाई |
तब बहु देवन संग विसेस | आनंद-नाटक ठयौ सुरेस || करै गान गंधर्व-समाज । समयजोग सब बाजे साज ॥१११॥
देखै अस्वसेन नरनाथ । पुत्र सहित सब परिजन साथ || प्रथम रूप नव भव दरसाय । पुहपांजुलि खेपी सुरराय ||११२॥ तांडव नाम निरत आरंभ । कियौ जगतजन करन अचंभ || नट सरूप धारयौ अमरेस । रंगभूमि कीनौं परवेस ||११३||
मंगलीक सिंगार संवार । सब संगीत वेद अनुसार 11 ताल मान विधिसहित सुभाय । रंग-धरा-पर फेरै पाय ||११४||
करैं कुसुम-बरसा नभ देव । देखि इंद्रकी भक्ति सुभेव ।। बीना मुरज बांसली ताल । बाजे गेह गीतकी चाल ||११५ ॥ करैं किंनरी मंगलपाठ । बिरियां जोग बन्यौ सब ठाठ || नाचै इंद्र भमैं बहु भाय ॥ मोरे हाथ कंठ कटि पाय ||११६ ॥
अद्भुत तांडवरस तिहिं बार | दरसावै जन अचरजकार || सहस भुजा हरि कीनी तबै । भूषन भूषित सोहैं सबै ||११७||
धारत चरन चपल अति चलैं । पहुमी कांपै गिरिवर हलैं || भमै मुकुट चकफेरी लेत । ताकी रतनप्रभा छबि देत ||११८||
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