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________________ संदृष्टि नं. 32 सौधर्म - ऐशान स्वर्ग भाव (31) सौधर्म-ऐशान स्वर्ग के देवों के पर्याप्त अवस्था में 31 भाव होते हैं। जो इस प्रकार हैं - सम्यक्त्व 3, कुज्ञान 3, ज्ञान 3, दर्शन 3, क्षायो. लब्धि 5, देवगति कषाय 4, पुल्लिंग, मिथ्यात्व, पीत लेश्या, असंयम, अज्ञान, असिद्धत्व पारिणामिक भाव 3 | गुणस्थान मिथ्यात्व आदि 4 होते हैं। संदृष्टि इस प्रकार है - गुणस्थान भाव व्युच्छित्ति भाव अभाव - मिथ्यात्व2 (मिथ्यात्व, 24 (कुज्ञान 3, चक्षु, 17(सम्यक्त्व 3, ज्ञान 3, अभव्यत्व) अचक्षु दर्शन, क्षायो. | अवधिदर्शन) लब्धि 5, देवगति, कषाय 4, मिथ्यात्व, पीत लेश्या, असंयम, पुल्लिंग, अज्ञान, असिद्धत्व पारिणामिक भाव 3) सासादन| 3 (कुज्ञान ) 22 (उपर्युक्त24 - 19(उपर्युक्त 7 + । मिथ्यात्व, अभव्यत्व) | मिथ्यात्व, अभव्यत्व) मिश्र 23 (मिश्रज्ञान 3, दर्शन 8 (उपर्युक्त 9 +कुज्ञान 3, क्षायो. लब्धि 5, |3- मिश्रज्ञान3, अवधि | देवगति, कषाय 4, दर्शन) पीतलेश्या, असंयम, अज्ञान, असिद्धत्व, जीवत्व, भव्यत्व, पुल्लिंग) अविरत 12 (देवगति असंयम) 26 (सम्यक्त्व 3, ज्ञान ] 5 (कुज्ञान 3, मिथ्यात्व, 13, दर्शन 3, क्षायो. अभव्यत्व) लन्धि 5, देवगति, कषाय 4, पीतलेश्या, पुल्लिंग असंयम, अज्ञान, असिद्धत्व, जीवत्व,भव्यत्व) (79) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002685
Book TitleBhav Tribhangi
Original Sutra AuthorShrutmuni
AuthorVinod Jain, Anil Jain
PublisherGangwal Dharmik Trust Raipur
Publication Year2000
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size6 MB
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