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________________ संदृष्टि नं. 30 भवनत्रिक निर्वृत्यपर्याप्तक भाव (25) भवनत्रिक देव देवियों की निर्वृत्यपर्यास अवस्था में 25 भाव होते है जो इस प्रकार है - कुमति ज्ञान, कुश्रुतज्ञान, चक्षु दर्शन, अचक्षु दर्शन, क्षायोपशमिक लब्धि 5, असंयम, देवगति, कषाय 4, विवक्षित लिंग1, अशुभ लेश्या 3, अज्ञान, असिद्धत्व, मिथ्यात्व, पारिणामिक भाव 3 | गुणस्थान आदि के दो होते है। गुणस्थान भाव व्युच्छित्ति भाव अभाव 이 मिथ्यात्व 2 (मिथ्यात्व, |25 (उपर्युक्त ) अभव्यत्व) सासादन 2 (कुज्ञान 2) |23 (उपर्युक्त 25- | मिथ्यात्व, अभव्यत्व) 2 (मिथ्यात्व, अभव्यत्व) संदृष्टि नं. 31 कल्पवासी देवी निर्वृत्यपर्याप्तक भाव (23) कल्पवासी देवियों के अपर्याप्त अवस्था में 23 होते है जो इस प्रकार है - कुज्ञान 2, दर्शन2, क्षायो. लब्धि 5, असंयम, देवगति, कषाय 4, स्त्रीवेद, पीत लेश्या, अज्ञान, असिद्धत्व, मिथ्यात्व, अभव्यत्व पारिणामिक भाव 3 । गुणस्थान आदि के दो होते है। गुणस्थान भाव व्युच्छित्ति भाव , अभाव मिथ्यात्व 2 (मिथ्यात्व, 23 (उपर्युक्त कथित) |0 अभव्यत्व) सासादन 2 (कुज्ञान 2) 21 (उपर्युक्त 23 - | 2 (मिथ्यात्व, मिथ्यात्व, अभव्यत्व) | अभव्यत्व) (78) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002685
Book TitleBhav Tribhangi
Original Sutra AuthorShrutmuni
AuthorVinod Jain, Anil Jain
PublisherGangwal Dharmik Trust Raipur
Publication Year2000
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size6 MB
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