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________________ संदृष्टि नं. 6 वंशा पृथ्वी भाव {30} नोट-दूसरी पृथ्वी से सातवीं पृथ्वी तक पर्याप्त और अपर्याप्त अवस्था में क्षायिक सम्यग्दर्शन नहीं होता है तथा अपर्याप्त अवस्था में पहला गुणस्थान ही होता है। वंशा - वंशा पृथ्वी में धम्मा पृथ्वी में कहे गये 31 भावों में से क्षायिक सम्यक्त्व कम करने पर 30 भाव होते हैं वे इस प्रकार हैं - औपशमिक सम्यक्त्व, कुज्ञान 3, ज्ञान 3, दर्शन 3, क्षायोपशमिक लब्धि 5, क्षायोपशमिक सम्यक्त्व, नरकगति, कषाय 4, नपुंसक लिंग, कापोत लेश्या, मिथ्यात्व, असंयम, अज्ञान, असिदत्व, पारिणामिक 3 भाव | इस पृथ्वी में केवल क्षायिक सम्यक्त्व मात्र का अभाव होता है। शेष कथन धम्मा पृथ्वी के समान ही जानना चाहिए। संदृष्टि इस प्रकार है - गुणस्थान भाव व्युच्छित्ति भाव अभाव K2} {मिथ्यात्व, [{24} {चक्षु अचक्षु |6) {औपशमिक मिथ्यात्व अभव्यत्व) दर्शन, कुमति, कुश्रुत, सम्यक्त्व , मति, श्रुत कुअवधि ज्ञान, अवधि ज्ञान, अवधि क्षायोपशमिक पाँच दर्शन,क्षयोपशमिक लब्धि , सम्यक्त्व} नरकगति,कापोत लेश्या, नपुंसक लिंग, चार कषाय, अज्ञान असिद्धत्व, असंयम, मिथ्यात्व, जीवत्व भव्यत्व, अभव्यत्व 2. 1{3} {कुमति, सासादन कुश्रुत , कुअवधि ज्ञान} (22} {चक्षु अचक्षु |(8) {औपशमिक दर्शन, कुमति, कुश्रुत, सम्यक्त्व, मति, श्रुत कुअवधि ज्ञान, अवधि ज्ञान, अवधि क्षायोपशमिक पाँच दर्शन,क्षयोपशम लब्धि , सम्यक्त्व, मिथ्यात्व, नरकगति,कापोत अभव्यत्व) लेश्या, नपुंसक लिंग, चार कषाय, अज्ञान, असिद्धत्व, असंयम, जीवत्व, भव्यत्व (41) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002685
Book TitleBhav Tribhangi
Original Sutra AuthorShrutmuni
AuthorVinod Jain, Anil Jain
PublisherGangwal Dharmik Trust Raipur
Publication Year2000
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size6 MB
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