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________________ संदृष्टि नं.5 धम्मा अपर्याप्त (29 भाव) सामान्य नरक रचना में कहे 3 भावों में से उपशम सम्यक्त्व,कुअवधि ज्ञान,कृष्ण नील लेश्या के अभाव में 29 भाव ही होते हैं। गुणस्थान मिथ्यात्व और अविरत दो ही होते हैं। गुणस्थान भाव व्युच्छित्ति अभाव - भाव - 1. 14} {मिथ्यात्व |(23} {चक्षु, अचक्षु (6){क्षायिक सम्यक्त्व, मिथ्यात्व अभव्यत्व, दर्शन, कुमति, कुश्रुत मति, श्रुत अवधि ज्ञान, कुमति, कुश्रुत ज्ञान, क्षायोपशमिक अवधिदर्शन, ज्ञान} पांच लब्धि, क्षायोपशमिक सम्यक्त्व} नरकगति,कापोत लेश्या, नपुंसक लिंग, चार कषाय, अज्ञान असिद्धत्व, असंयम, मिथ्यात्व, जीवत्व, भव्यत्व, अभव्यत्व 2. अविरत {3} {नरक गति, कापोत लेश्या, असंयम} |{25} {क्षायिक (4) {कुमति, कुश्रुत ज्ञान, |सम्यक्त्व, मति, श्रुत |मिथ्यात्व, अभव्यत्व} अवधि ज्ञान, चक्षु, अचक्षु, अवधि दर्शन,क्षयोपशम सम्यक्त्व, क्षायोपशमिक पाँच लब्धि , नरकगति,कापोत लेश्या, नपुंसक लिंग, चार कषाय, अज्ञान असिद्धत्व, असंयम, जीवत्व, भव्यत्व} (40) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002685
Book TitleBhav Tribhangi
Original Sutra AuthorShrutmuni
AuthorVinod Jain, Anil Jain
PublisherGangwal Dharmik Trust Raipur
Publication Year2000
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size6 MB
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