________________
-
-
-
गुणस्थान भाव व्युच्छित्ति भाव
अभाव 5. 2
31 [औपशमिक 22 [औपशमिक चारित्र देशविरत ||संयमासंयम, सम्यक्त्व, क्षायिक । क्षायिक पॉच लब्धि, तिर्यञ्च गति] सम्यक्त्व, मति, श्रुत, | केवलज्ञान, केवलदर्शन,
अवधि ज्ञान, चक्षुदर्शन क्षायिक चारित्र, मनः अचक्षुदर्शन, अवधि | पर्यय ज्ञान, कुमति, दर्शन, क्षायोपशमिक कुश्रुत, कुअवधि ज्ञान, पॉच लब्धि,
सराग चारित्र, नरक गति, क्षायोपशमिक देव गति, कृष्ण, नील सम्यक्त्व, संयमासंयम | कापोत लेश्या, असंयम, मनुष्य गति,तिर्यञ्च | मिथ्यात्व, अभव्यत्व गति, पीत,पद्म शुक्ल लेश्या,तीन लिंग, चार कषाय, अज्ञान, असिद्धत्व, जीवत्व, भव्यत्व]
6. प्रमत्त ko) संयत
(31) [औपशमिक | 22 [औपशमिक चारित्र सम्यक्त्व, क्षायिक क्षायिक पॉच लब्धि सम्यक्त्व, मति श्रुत, केवलज्ञान, केवल दर्शन, अवधि, मनः पर्यय क्षायिक चारित्र कुमति, ज्ञान, चक्षु दर्शन, कुश्रुत, कुअवधि ज्ञान, अचक्षुदर्शन, अवधि संयमासंयम, तिर्यश्चगति दर्शन, क्षायोपशमिक नरकगति, देवगति, पाँच लन्धि, कृष्ण, नील, कापोत क्षायोपशमिक लेश्या, असंयम, सम्यक्त्व, सराग मिथ्यात्व, अभव्यत्व] चारित्र मनुष्यगति, पीत, पद्म, शुक्ल लेश्या, तीन लिंग, चार कषाय, अज्ञान, असिद्धत्वजीवत्व भव्यत्व
(24)
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org