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दानादिकं च दर्शनत्रिकं वेदक सरागचारित्रम् ।
क्षायिकसम्यक्त्वमभव्यत्वं न पारिणामिके भावा हि ।। अन्वयार्थ :- (आहारदुगे) आहारक काययोग और आहारक मिश्र काययोग में (मणुयगदी) मनुष्य गति (तह) तथा (कसायसुहतिलेस्सा) कषाय 4, तीन शुभ लेश्यायें, (पुंवेदमसिदत्त) पुरुष वेद, असिद्धत्व (अण्णाणं) अज्ञान (तिण्णि सण्णाणं) तीन सम्यग्ज्ञान (च) और (दाणादिय) क्षायोपशामिक दानादिक पाँच (दसणतियं) तीन दर्शन, (वेदगसरागचारित्तं) वेदक सम्यक्त्व, सराग चारित्र (खाइयसम्मत्तं) क्षायिक सम्यकत्व ये उपर्युक्त भाव पाये जाते हैं । (हि) निश्चय से (परिणामाय भाबा) पारिणामिक भावों में से (अभव्वं) अभव्यत्व (ण) नहीं पाया जाता हैं।
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संदृष्टि नं.52
आहारक काययोग भाव (27) आहारक काययोग में 27 भाव होते हैं । गुणस्थान प्रमत्त संयत मात्र ही होता है। संदृष्टि निम्नप्रकार से है - गुणस्थान| भाव व्युच्छित्ति भाव । अभाव प्रमत्त 2 (0) 27 (क्षायिक, संयत
क्षयोपशम सम्यक्त्व, ज्ञान 3, दर्शन 3, क्षायो. लब्धि 5, मनुष्यगति, कषाय 4, शुभ लेश्या 3, पुवेद, सराग, संयम, अज्ञान, असिद्धत्व, जीवत्व, भव्यत्व )
विशेष - आहारक काययोग में 6 भावों की व्युच्छिति दर्शायी गई है - यह विषय विचारणीय है।
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