SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 113
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कम्मइये णो संति हु मणपज्जसरागदेसचारित्तं । वेभंगुवसमचरणं साणे थीवेदवोच्छेदो ॥४।। कार्मणे नो सन्ति हि मनःपर्ययसरागदेशचारित्राणि । विभंगोपशमचरणे साने स्त्रीवेदव्युच्छेदः ॥ अन्वयार्थ :- (कम्मइये) कार्मण काययोग में (मणपज्जसरागदेस चारित्त) मनःपर्ययज्ञान, सरागचारित्र, देशचारित्र, (वेभंगुवसमचरण) विभंगावधिज्ञान, उपशम चारित्र (हु) निश्चय से ये भाव (णो) नहीं (संति) होते हैं (साणे) और सासादन गुणस्थान में (थीवेदवोच्छे दो) स्त्री वेद की व्युच्छिति हो जाती है। विदियगुणे णिरयगदीणत्थिदुसा अत्थि अविरदेठाणे। दुतिउणतीसंणवयं मिच्छादिसुचउसुवोच्छेदो।।88।। द्वितीयगुणे नरकगतिः नास्ति तु सा अस्ति अविरते स्थाने। द्वित्र्येकानत्रिंशत् नवकं मिथ्यादिषु चतुषु व्युच्छेदः ।। __ अन्वयार्थ :- कार्मण काययोग में (विदियगुणे) सासादन गुणस्थान में (णिरयगदी) नरकगति (णत्थि) नहीं होती है। (अविरदे ठाणे) चतुर्थ गुणस्थान में (सा) वह नरकगति (अत्यि) होती है। (मिच्छादिसु) मिथ्यात्व गुणस्थान, सासादन गुणस्थान , अविरत सम्यग्दृष्टि और सयोगकेवली गुणस्थान में (दु तिउतीसंणवयं) दो, तीन, उनतीस और नौ भावों की क्रमशः (वोच्छेदो)व्युच्छिति होती है। संदृष्टि नं. 53 कार्मण काययोग भाव (48) कार्मण काययोग में 48 भाव होते हैं। वे इस प्रकार से जानना चाहिए - 53 भावों में से, उपशम चारित्र, मनःपर्ययज्ञान, कुअवधिज्ञान, संयमासंयम, सराग संयम ये पाँच भाव कम करें, शेष भावों की संख्या वहाँ सद्भावरूप से जानना चाहिए। गुणस्थान प्रथम, द्वितीय, चतुर्थ और 13 वा जानना चाहिए। संदृष्टि निम्न प्रकार से है - . (100) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002685
Book TitleBhav Tribhangi
Original Sutra AuthorShrutmuni
AuthorVinod Jain, Anil Jain
PublisherGangwal Dharmik Trust Raipur
Publication Year2000
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy