________________
गुणस्थान भाव व्युच्छित्ति भाव । अभाव मिथ्यात्व 2 (मिथ्यात्व, 31 (कुज्ञान2, दर्शन 2, 1 (सम्यक्त्व 3, ज्ञान 3, अभव्यत्व)
क्षायो. लब्धि 5, लिंग | अवधिदर्शन) 3, लेश्या 6, कषाय 4, गति 2, मिथ्यात्व, असंयम, अज्ञान, असिद्धत्व,
पारिणामिक भाव 3) सासादन 4(कुज्ञान 2, 27 (कुज्ञान2, दर्शन | 11 (मिथ्यात्व,
कृष्ण नील 12, क्षायो. लब्धि 5, अभव्यत्व, सम्यक्त्व 3, लेश्या) देवगति, कषाय 4, ज्ञान 3, अवधि दर्शन,
लिंग 2(स्त्री, पुरुष) नरकगति, नपुंसक लेश्या 6, असंयम, लिंग) अज्ञान, असिद्धत्व, पारिणामिक भाव 2)
अविरत 10
32 (सम्यक्त्व 3, ज्ञान |6 (कुज्ञान 2, लेश्या 2, 3, दर्शन 3, क्षायो. । मिथ्यात्व, अभव्यत्व) लब्धि 5, लिंग 3, गति 2, कापोतादि लेश्या, कषाय, असंयम, अज्ञान, असिद्धत्व पारिणामिक भाव 2)
नोट - चतुर्थ गुणस्थान में वैक्रियिक मिश्रकाय योग में स्त्री लिंग किस अपेक्षा से कहा गया है यह विचारणीय है।
आहारदुगे होति हुमणुयगदी तह कसायसुहतिलेस्सा। पुंवेदमसिद्धत्तं अण्णाणं तिण्णि सण्णाणं 18511 आहारद्विके भवन्ति हि मनुष्यगतिः तथा कषायशुभत्रिलेश्याः। पुंवेदोऽसिद्धत्वं अज्ञानं त्रीणि सम्यग्ज्ञानानि ॥ दाणादियं च दसणतिदयं वेदगसरागचारित्तं । खाइयसम्मत्तमभव्वं ण परिणामाय भावा हु ।।86 ।।
(98)
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org