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वैक्रियिक काय योग के समान भाव जानना चाहिए विशेषता यह है कि (ण विभंगो) विभंगावधिज्ञान नहीं होता है । (साने) सासादन गुणस्थान में (किण्हदुगछि दी) कृष्णद्विक कृष्णलेश्या व नील लेश्या की व्युच्छित्ति हो जाती है । (पुण) और वैक्रियिक काययोग में वर्णित भावों में (षंं) नपुंसक वेद और (णिरियगदि) नरकगति को (तम्हा अवणीय) उन में से अर्थात् सासादन गुणस्थान में से कम करके (असंजदे) चतुर्थ गुणस्थान में (खयऊ) मिला दो ।
भावार्थ- वैक्रियिक मिश्रकाययोग में मन:पर्यय ज्ञान, उपशम चारित्र, देशचारित्र, सरागचारित्र क्षायिक सम्यक्त्व से रहित 8 क्षायिक भाव, विभंगज्ञान ये 15 भाव न होने से 38 भाव होते हैं । वैक्रियिक मिश्रकायोग में मिश्र गुणस्थान नहीं होता है । सासादन गुणस्थान में कृष्ण नील लेश्या की व्युच्छित्ति हो जाती है । तथा सासादन गुणस्थान में नपुंसक वेद एवं नरक गति को घटाकर ये भाव असंयत गुणस्थान में मिलाना चाहिए। क्योंकि सासादन गुणस्थान में मरण करने वाला जीव नरक गति में उत्पन्न नहीं होता है । यदि कोई यहाँ यह शंका करे कि मिश्रकाय योग में चतुर्थ गुणस्थान में नपुंसक वेद एवं नरक गति का सद्भाव कैसे संभव है ? तो जिन जीवों ने संक्लेश परिणामों से मिथ्यात्व गुणस्थान में नरक आयु का बंध कर लिया बाद में केवली द्वय के पाद मूल में क्षायिक सम्यग्दर्शन की प्राप्ति का प्रारंभ किया। ऐसे कृतकृत्य वेदक सम्यग्दृष्टि तथा क्षायिक सम्यग्दृष्टि जीवों के वैक्रियिक मिश्रयोग में असंयत गुणस्थान में नपुंसकवेद तथा नरकगति का सद्भाव पाया जाता है ।
संदृष्टि नं. 51 वैक्रियिक मिश्रकाययोग भाव ( 38 )
वैक्रियिक मिश्रकाययोग में 38 भाव होते हैं जो इस प्रकार हैं- सम्यक्त्व 3, कु ज्ञान 2, ज्ञान 3, दर्शन 3, क्षायो. लब्धि 5, नरकगति, देवगति, कषाय 4, लिंग 3, लेश्या 6, मिथ्यात्व, असंयम, अज्ञान, असिद्धत्व, पारिणामिक भाव 3 | गुणस्थान मिथ्यात्व, सासादन और अविरत ये तीन होते हैं। संदृष्टि इस प्रकार है -
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