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________________ - अभाव गुणस्थान भाव व्युच्छित्ति भाव अप्रमत्त (दे. संदृष्टि 10/31 (दे. संदृष्टि 1) विरत 20 ( उपर्युक्त ) अपूर्वकरण (0) 28( " ) 23 (उपर्युक्त 20 + पीत, पद्म लेश्या, क्षायो. सम्यक्त्व) (दे. संदृष्टि 10 | 28 ( दे. संदृष्टि 1) | 23 (23 उपर्युक्त) अनि. सवेद अनि. 36 " 1/25 ( " ) 26 (उपर्युक्त 25 +3 अवेद लिंग) सूक्ष्मसां-2( " )/22 ( पराय " ) उपशान्त | 2( मोह " ) 21 ( ". ) 29 (उपर्युक्त 26 + क्रोध मान, माया कषाय) .. 30 (उपर्युक्त 29 + सराग संयम, लोभ कषाय - औपशमिक चारित्र) 31 (उपर्युक्त 30 + औपशमिक चारित्र, औपशमिक सम्यक्त्व - क्षायिक चारित्र) - क्षीण मोह | 13 ( " ) 20 ( " ) सयोग केवली 14( " ) (शुक्ललेश्या क्षायिकदानादि 4 लब्धि , क्षायिक चारित्र, असिद्धत्व, मनुष्यगति, भव्यत्व) 37 (औपशमिक भाव 2, चार ज्ञान, 3 दर्शन, क्षायोपशमिक सम्यक्त्व, सराग चारित्र, संयमासंयम, क्षायो.5 लब्धि, कृष्णादि 5 लेश्याएँ, लिंग 3, चार कषाय, तिर्यंचगति, मिथ्यात्व, असंयम, कुज्ञान 3, अज्ञान, अभव्यत्व) (92) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002685
Book TitleBhav Tribhangi
Original Sutra AuthorShrutmuni
AuthorVinod Jain, Anil Jain
PublisherGangwal Dharmik Trust Raipur
Publication Year2000
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size6 MB
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