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संदृष्टि चार्ट नं. 44
चतुरिन्द्रिय भाव (25) चतुरिन्द्रिय के 25 भाव होते हैं जो इस प्रकार हैं - कुशान 2, चक्षु अचक्षु दर्शन, क्षायो. लब्धि 5, तिथंच गति, कषाय 4, नपुंसक लिंग, अशुभ लेश्या 3, मिथ्यात्व, असंयम, अज्ञान, असिद्धत्व, पारिणामिक भाव 3 गुणस्थान मिथ्यात्व और सासादन ये दो होते हैं । संदृष्टि इस प्रकार है - गुणस्थान भाव व्युच्छित्ति भाव .
अभाव मिथ्यात्व |2 (मिथ्यात्व, | 25 (उपर्युक्त)
अभव्यत्व)
सासादन]
23 (25 उपर्युक्त . मिथ्यात्व, अभव्यत्व)
12 (मिथ्यात्व, अभव्यत्व)
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पंचेदिएसु तसकाइएसु दु सव्वे हवंति भावा हु। एयं वा पण काए ओराले णिरयदेवगदीहीणा ||801 पंचेन्द्रियेषु त्रसकायिकेषु तु सर्वे भवन्ति भावा हि ।
एकं वा पंचकाये औदारिके नरकदेवगतिहीनाः ।। अन्वयार्थ :- (पंचेदिएसु) पंचेन्द्रिय जीवों में (तसकाइएसु) तथा त्रसकायिकों में (हु) निश्चय से (सव्वे) सभी (भावा) भाव (हवंति) होते हैं। (पंचकाये) पाँच स्थावरों में (एयं वा) एकेन्द्रिय वत् सभी भाव जानना चाहिए और (ओराले) औदारिक काययोग में (णिरयदेवगदीहीणा) नरकगति और देवगति नहीं पाई जाती है। स्पष्टीकरण के लिए संदृष्टि 45-48
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