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एयक्खविगतिगक्खे तिरियगदीसंढकिण्हतियलेस्सा। मिच्छ कसायासंजममणाणमसिद्धमिदि एदे ।।78।।
एकाक्षद्वित्र्यक्षे तिर्यग्गतिः षंढ कृष्णत्रिकलेश्याः । मिथ्यात्वकषायासंयम अज्ञानमसिद्धमित्येते ।। दाणादिकुमदिकुसुदं अचक्खुदंसणमभव्वभव्वत्तं । जीवत्तं चेदेसिं चदुरक्खे चक्खुसंजुत्तं ।।79।। दानादिकुमतिकुश्रुतं अचक्षुर्दर्शनमभव्यत्वभव्यत्वे ।
जीवत्वं चैतेषां चतुरक्षे चक्षुःसंयुक्तम् ।। अन्वयार्थ :- (एयक्खविगतिगक्खे) एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय जीवों में (तिरियगदी) तिर्यंचगति (संढ किण्हतियलेस्सा) नपुसंकवेद, कृष्णादि तीन अशुभलेश्यायें (मिच्छ कसायासंजममणाणमसिद्धमिदि) मिथ्यात्व, चार कषाय, असंयम, अज्ञान, असिद्धत्व (ऐ)ये (चेदेसिं)और इनमें (दाणादिकुमदिकुसुदं) दानादि 5 लब्धियाँ, कुमति, कुश्रुतज्ञान, (अचक्खुदंसणमभव्वभव्वत्तम्) अचक्षुदर्शन, अभव्यत्व, भव्यत्व, (जीवत्त) जीवत्वयेसभीभाव पाये जाते हैं तथा (चदुरक्खे) चतुरिन्द्रिय जीवोंमें (चक्खुसंजुत्तं) चक्षुदर्शनसेसहित उपर्युक्त सभी भाव पाये जाते हैं।
संदृष्टि नं. 43 एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय त्रीन्द्रिय भाव (24) एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय एवं त्रीन्द्रिय के 24 भाव होते हैं जो इस प्रकार हैं - कुशान 2, अचक्षु दर्शन, क्षायो. लब्धि 5, तिथंच गति कषाय 4, नपुंसक लिंग, अशुभ लेश्या 3, मिथ्यात्व, असंयम, अज्ञान, असिद्धत्व, पारिणामिक भाव 31गुणस्थान मिथ्यात्व और सासादन ये दो होते हैं। संदृष्टि इस प्रकार है - गुणस्थान भाव व्युच्छित्ति भावा अभाव मिथ्यात्व | 2 (मिथ्यात्व, 24 (उपर्युक्त)
अभव्यत्व)
-
सासादन]0
22 (उपर्युक्त 24- 2 (मिथ्यात्व, | मिथ्यात्व, अभव्यत्व) | अभव्यत्व)
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