________________
अणुदिसु अणुत्तरेसु हि जादा देवा हवंति सद्दिट्ठी। तम्हा मिच्छ मभव्वं अण्णाणतिगंचण हि तेसिं।।7।।
अनुदिशेषु अनुत्तरेषु जाता देवा भवन्ति सदृष्ट यः ।
तस्मान्मिथ्यात्वमभव्यत्वं अज्ञानत्रिकं च न हि तेषां ॥ अन्वयार्थः- (अणुदिसु) नवअनुदिशऔर (अणुत्तेरसु) पंच अनुत्तरों में (जादा) उत्पन्न (देवा) देव (हि) नियम से (सहिट्ठी) सम्यग्दृष्टि (हवंति) होते हैं (तम्हा) इसलिये (तेसिं) उनमें (हि) नियम से (मिच्छ मभव्वं) मिथ्यात्व, अभव्यत्व और (अण्णाणतिगं) कुमति, कुश्रुत और विभंगज्ञान (ण) नहीं (हवंति) होते हैं।
संदृष्टि नं. 42
अनुदिश आदि 14 भाव (26) नौ अनुदिश और पांच अनुत्तर इन 14 स्थानों में 26 भाव होते हैं जो इस प्रकार हैं - सम्यक्त्व 3, ज्ञान 3, दर्शन 3, क्षायो. लब्धि 5, देवगति, कषाय 4, शुक्ल लेश्या, पुल्लिंग, असंयम, अज्ञान, असिद्धत्व, जीवत्व और भव्यत्व । इन 14 स्थानों में नियम से सभी देव सम्यग्दृष्टि ही होते हैं अतः इनके गुणस्थान एक 'अविरत सम्यग्दृष्टि (4) ही होता है । संदृष्टि इस प्रकार है - गुणस्थान भाव व्युच्छित्ति भाव मिथ्यात्व 0
26 (उपर्युक्त)
अभाव
इति गति मार्गणा
(86)
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org