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________________ भ्रान्त्वाखिलेऽस्य दृशो वशानां प्रभापयोऽक्षिप्रपयोर्निपीय । छायां चिरं भ्रूलतयोरुपास्य, भालस्थले संदधुरध्वगत्वम् ॥ ५९॥ अर्थ :- स्त्रियों की दृष्टियाँ इन भगवान् के मस्त अ में घूमकर लोचन रूप दो प्याऊओं के प्रभारूप जल को पीकर भौंह रूप लताद्वय की छाया की चिरकाल तक उपासना कर ललाट रूप स्थल में पथिकपने को धारण करता थीं । अर्धं च पूर्णं च विधुं ललाट-मुखच्छलाद्वीक्ष्य तदङ्गभूतौ । न के गरिष्ठां जगुरष्टमीं च, राकां च तन्नाथतया तिथीषु ॥ ६० ॥ अर्थ आधे और पूर्ण चन्द्रमा को ललाट और मुख के बहाने से उनके अङ्ग के रूप में देखकर किस विज्ञ पुरुष ने अष्टमी और पूर्णिमा को अर्द्ध और पूर्ण चन्द्रमा के नाथ होने पर (पन्द्रह ) तिथियों में ज्येष्ठ नहीं कहा। , विशेषार्थ :- स्वामी का भाल अर्द्धचन्द्र के सदृश था और मुख सम्पूर्ण चन्द्रमण्डल के समान था अतः अष्टमी और पूर्णमासी तिथियाँ समस्त तिथियों के मध्य में ज्येष्ठ हुईं, ऐसा कहा जाता है । द्विष्टोऽपि लोकैरमुना स्वमूर्ध्नि, निवेशितः केशकलापरूपः । वर्णोऽवरः श्रीभरमाप नाथ- प्रसादसाध्येह्युदये कुलं किम् ॥ ६१ ॥ अर्थ :- श्याम वर्ण ने लोगों से द्वेष किए जाने पर भी भगवान् के द्वारा अपने मस्तक पर केशों के समूह के रूप में धारण किए जाने पर शोभा के समूह को प्राप्त किया । निश्चित रूप से प्रभु की कृपा से साध्य उदय के होने पर कुल का क्या देखना ? अर्थात् राजा जिस पुरुष पर कृपालु होता है, उस अकुलीन के भी सम्पदायें हो जाती हैं। (१४) बुद्धवा नवश्मश्रुसमाश्रिताङ्क - श्रीकं निशोदीतमदोमुखेन्दुम् । केशौघदम्भात् किमु पुष्पतारा-लङ्कारहारिण्यभिसारिकाऽभूत् ॥ ६२ ॥ अर्थ : :- पुष्प रूप ताराओं के अलङ्कार के कारण मनोहरा रात्रि केशों के समूह के बहाने से नवीन दाढ़ी-मूंछ से आश्रित शोभा यक्त उनके मुख रूप चन्द को उदित जानकर अभिसारिका हुई । विशेष तीर्थंकर के दाढ़ी-मूंछ नहीं होती है । यह कवि की निजी कल्पना है । वर्णेषु वर्णः स पुरस्सरोऽस्तु, योऽजस्त्रमाशिश्रियदङ्गमस्य । अवेपि यच्छायलवेऽपि लब्धे, लोके सुवर्णश्रुतिमाप हेम ॥ ६३ ॥ अर्थ :वर्णों में वह (पीत) वर्ण अग्रसर हो, जिसने इनके अङ्ग का आश्रय लिया । : Jain Education International [ जैन कुमारसम्भव महाकाव्य, सर्ग-१ ] For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002679
Book TitleJain Kumarsambhava Mahakavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayshekharsuri
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2003
Total Pages266
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size12 MB
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