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________________ चापल्यकृद्वाल्यमपास्य सोऽथ, स्वे यौवनं वासयति स्म देहे। साध्वौचिती द्युम्नविशेषदानात्, प्रकाशयामास तदप्यमुष्य ॥ ३८॥ अर्थ :- अनन्तर उन भगवान् ऋषभदेव ने चंचलता को करने वाली बाल्यावस्था को छोड़कर अपनी देह में यौवन को वास कराया। उस यौवन ने भी विशेष द्रव्य अथवा बल प्रदान कर सत्पुरुष के औचित्य गुण को प्रकाशित किया। (सज्जनों का यह लक्षण है कि उपकार करने वाले पर प्रत्युपकार करते हैं)। तस्याननेन्दावुपरि स्थितेऽपि, पादाब्जयोः श्रीरभवन हीना। धत्तां स एव प्रभुतामुदीते, गुह्यन्ति यस्मिन्न मिथोऽरयोऽपि ॥ ३९ ।। अर्थ :- उनके मुखचन्द्र ऊपर विद्यमान रहने पर भी चरण कमलों की शोभाहीन नहीं हुई। वही पुरुष प्रभुता को धारण करता है, जिस पुरुष का उदय होने पर पारस्परिक शत्रु भी द्रोह नहीं करते हैं। दत्तैर्नमद्भिः ककुभामधीशै-श्चान्द्रैः किरीटैर्निजराजचिन्हैः। पद्धयां प्रभोरङ्गुलयो दशापि, कान्ता अभूष्यन्त मिषानखानाम् ॥४०॥ अर्थ :- प्रभु के दोनों चरणों से निकली दशों अङ्गुलियाँ सुन्दर नाखूनों के बहाने से चन्द्रकान्तमणिनिर्मित, झुकते हुए दिग्पालों के द्वारा दिए गए अपने राजचिह्न रूप मुकुटों से अलङ्कृत रहती थीं। (दूसरा कोई भी जो महान् राजा की सेवा करता है, वह अपने राजचिह्नों को सामने रख देता है)। अन्तः ससारेण मृदुत्वभाजा, पादाब्जयोरूर्ध्वमवस्थितेन। विलोमताऽधायि तदीयजंघा-नालद्वयेनालमनालमेतत् ॥ ४१॥ अर्थ :- मध्य भाग में सार सहित, सुकुभारता का सेवन करने वाली, चरणकमलयुगल के ऊपर अवस्थित उसकी जंघा रूप नालद्वय ने अत्यधिक विसदृशपने अथवा विपरीतपने (या लोभरहितपने) को धारण किया। यह नाल नहीं था। विशेष :- चूँकि भगवान् ऋषभदेव का जंघा रूप नालद्वय उनके चरणकमलों के ऊपर स्थित था, अत: अन्य कमलनालों से वह विपरीत था। धीराङ्गनाधैर्यभिदे पृषत्काः , पञ्चेषुवीरस्य परेऽपि सन्ति। तदूरुतूणीरयुगं विशाल-वृत्तं विलोक्येति बुधैरतर्कि ॥ ४२॥ अर्थ :- विद्वानों ने विशाल वृत्त वाले धीर स्त्रियों के धैर्य का भेदन करने वाले उनकी जंघाओं रूपी तूणीर युगल को देखकर, वीर कामदेव के अन्य भी बहुत से बाण हैं, ऐसा विचार किया। (१०) [जैन कुमारसम्भव महाकाव्य, सर्ग-१] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002679
Book TitleJain Kumarsambhava Mahakavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayshekharsuri
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2003
Total Pages266
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size12 MB
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