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आकाश : धु (2/26, 5/49), घन (2/28), नभ (3/49,7,49), विहाय (3/4, 11/54), नभस् (41 7,7/3), अंबर (4/45,5/32, 10/82), अन्तरिक्ष (6/46, 10/74), दिव (9/54), अभ्रंकष (7/ 47), व्योनि (7/75),ख (11/60), अभ्र (11/37), अन्तरस्थ (17/62)। कमल : अम्बुज (2/47, 6/21, 11/2), पद्म (3/80, 4/53, 9/59), अरविन्द (9/50, 10/1), कमल (4/31,7/42), राजीव (10/81, 11/51), अंबुरुह (10/82), तामरस (5/22), नलिन (5/ 48, 11/8), अब्ज (10, 84), पंकज (5/76), जलज (11/18), सरोज (6/22, 9/49, 10/3), नीरज (11/16), पयोज (6/63), नीरजन्मन् (8/7), पद्मिनी (8/9, 11/52)। रात्रि : निशा (2/33,6/2, 6/6, 10/84), तमस्विनी (2/35,6/8), क्षिपा (2/41, 6/20), रजनि (6/ 1, 9/46), भौती (6/3), हरिद्रा (6/7), रात्रि (6/19, 10/78), त्रियामा (6/21), नक्तं (6/88), शर्वरि (10/54), निशि (10/13), दोषा (6/57, 11/30), यामिनी (7/1, 10/82), क्षपा (11/10, 10/80)। देव : सुपर्व (2/45,4/46), विबुध (2/62, 4/25,5/17), अनिमिष (1/43), सुर (2/13), नाकिन् (2/70), देव (3/6), ऋभुक्षा (3/38,4/10, 4/12), त्रिदश (3/42), सुधाभुज (4/8, 10/5), अमर (4/19, 6/1, 11, 40), देवता (4/29), नाकसद (6/31), सुमनस् (6/31), सुधाशिन् (9/68)। सूर्य : पूषा, तिग्मरुचि, दिवाकर (सर्ग 2/20, 9/51), भास्कर (2/21, 8/42), रवि (2/36, 2/41, 2/ 53,11/11,11, 2, 9/50), विभाकर (3/17), तरणि (3/76, 9/20), दिनाधिप (3/77), विवस्वत् (4/22), भानु (6/70, 11/11), सूर (6/14, 11/8, 11/12), अहनीनं (5/6), द्युतिपति (5/57), भास्वद् (6/5,6/15,6/65), पतंग (6/10), भास्वान् (6/50), अंशु (6/69), सूर्य (7/46), अंशुमाली (8/30, 11/9), कर्मसाक्षी (8/44), प्रभाकर (4/54), धुपति (11/4), चण्डदीधिति (10/80), अशीतांशु (9/27), अर्यमाण (8/60), चंडरोचि (11/60), चक्रबंधु (11/52), व्योममणि (11, 37), अरुण (10, 77), सहस्रकर (10/3), ग्रहाणामधिभू (11/1)। पृथ्वी : मही (3/9,4/13, 9/66), पृथिवी (3/41), भुव (3/47,4/12, 4, 13), इला (4/1,6/55, 11/40), भुवि (4/9, 9/74), क्षिति (4/27, 9/73),क्ष्मा (5/53), क्षोणि (7/7), धरा (9/64), अवनि (9/38, 3/7), वसुधा (10/8), भू, क्षमा । चंद्र : इंदु (1/39, 2/21, 6/9, 9/47), चांद्र (1/40), शशी (2/22), चंद्र (2/27), शीतगु (2/34), कलानिधि (2/35,7/9), कलाभृत (3/26, 5/57, 9/41), शशिन् (4/38), सोम (5,28), सितांशु (6/6, 6/22), शुभ्रांशु (6/14), विधु (6/21, 6/63, 6/65), गोरधुति (6/38), दोषाकर (9/17), कुरंगाक्षी (7/44), तमस्विनि वल्लभ, शीतद्युति (10/83), चंद्रबिंब।
उपरोक्त उदाहरणों को देखते हुए समग्र महाकाव्य पढ़ते समय शब्दराशि पर कवि के असाधारण प्रभुत्व की प्रतीति होगी। कवि ने कितने ही अप्रचलित शब्दों का प्रयोग भी किया है। कितने ही सामान्य शब्दों का असाधारण अर्थ में प्रयोग किया है और कितने ही स्थानों पर शब्दश्लेष
का उपयोग किया है तथा भावानुकूल प्रसंगानुरूप प्रसादमय पदावली का प्रयोग किया है। शब्द भंडार और व्याकरण पर भी कवि का असाधारण प्रभुत्व देख सकते हैं। फिर भी उनके महाकाव्य में पांडित्य प्रदर्शन की कृत्रिमता कहीं दिखाई नहीं देती है। उनकी रचना संस्कृत महाकाव्यों के
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