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कालिदास 'कुमारसंभव' में लिखते हैं :
प्रसन्नदिक्पांसुविविक्तवातं शङ्कस्वनाऽनन्तर पुष्पवृष्टिः।
शरीरिणां स्थावरजंगमानां सुखाय तज्जन्मदिनं बभूव ।। १-२३॥ (निर्मल दिशाओं से युक्त, धूल रहित वायु से सम्पन्न, शंख ध्वनि से युक्त, पुष्पवृष्टि से सुशोभित ऐर, पार्वती का जन्मदिवस स्थावर एवं जंगम प्राणियों के लिये सुखकारक हुआ।)
इसके साथ तुलना करें 'जैनकुमारसंभव' का निम्न श्लोक :
मध्येऽनिशं निर्भरदःखपूर्णास्ते नारका अप्यदधुः सुखायाम्।
यत्रोदिते शस्तमहोनिरस्त-तमस्ततौ तिग्मरुचीव कोकाः॥ १-२०॥ (जैसे सूर्य के उदय से रात्रि का नाश होने पर चक्रवाक पक्षी सुख का अनुभव करता है, वैसे ही निरंतर क्षेत्रजन्यकृत एवं परमाधामीकृत वेदना से अत्यन्त दु:खी ऐसे नारकी के जीव भी जब भगवान का जन्म होता है तब सुख का अनुभव करते हैं।)
_ 'कुमारसंभव' में हिमालय अपने भावी जामाता को औषधिप्रस्थ नगर में ले गये उस समय शिव दर्शन हेतु नगर की उत्सुक स्त्रियाँ अपने-अपने कार्यों को छोड़कर देखने हेतु दौड़ कर आईं। उस प्रसंग का कालिदास ने सात श्लोकों में वर्णन किया है, इसमें से उदाहरण स्वरूप निम्न श्लोक देखें :
आलोकमार्गे सहसा व्रजन्त्या कयाचिदुद्वेष्टनवान्तमालयः।
बद्धं न सम्भावित एव तावत्करेण रुद्धोऽपि च केशपाशः॥ ७-५७।। (कोई स्त्री बालों में फूल गूंथ रही थी, वहीं शंकर के आने के समाचार सुन कर हाथ के बाल पकड़ कर दर्शन हेतु दौड़ गई।)
विलोचनं दक्षिणमज्जनेन सम्भाव्य तद्वञ्चितवामनेत्रा।
तथैव वातायनसन्निकर्षं ययौ शलाकामपरा वहन्ती॥ ७-५८॥ (किसी ने अपनी बायीं आँख में काजल लगाया और दायीं आँख में लगाना अभी बाकी था, लेकिन दर्शन की उत्सुकता में हाथ में सलाई लेकर ही वह दर्शन मार्ग तक चली गई।)
अर्धाचिता सत्वरमुत्थितायाः पदे पदे दुर्निमिते गलन्ती।
कस्याश्चिदासीद्रशना तदानीमङ्गष्ठमूलार्पित सूत्रशेषा॥ ७-६१॥ (कोई स्त्री जो स्वयं मोती की माला पिरो रही थी वह शंकर के आने का कोलाहल सुनकर उसे देखने गई। कदम-कदम मोती गिर जाने से आलोक-मार्ग तक केवल पैर के अंगूठे में बंधा धागा मात्र ही रहा।)
इसी प्रकार 'जैनकुमारसंभव' में ऋषभदेव के विवाह प्रसंग पर नर-नारियों के कुतूहल का श्री जयशेखरसूरि ने ग्यारह श्लोकों में वर्णन किया है। इनमें से उदाहरण रूप निम्र श्लोक देखे :
पंक्तिमौक्तिक निवेशनिमित्तं, स्वक्रमांगुलिकया धृतसूत्राम्।
हारयष्टिमवधूय दधावे, वीरुधं करिवधूरिव काचित्॥ ५-३८॥ (उस समय कोई स्त्री, हथिनी जैसे बेलड़ी को धारण करती है वैसे हार माला पिरोने हेतु खुद की
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