________________
कि जब आप पूर्व दिशा के समान पुत्र को जन्म दोगी तब मेरा शरीर सरोवर के समान आचरण करेगा।
सूर्योदय होने पर सरोवर में कमलों की पंक्ति खिलती है, वैसे ही आपके पुत्र का जन्म होने पर हमारे नेत्र रूपी कमल विकसित हो जायेंगे। फिर देवांगना आपके पुत्र को खिलाने हेतु पृथ्वी पर आकर हर्ष सहित उसका आलिंगन कर सुख प्राप्त करेंगी। आपका पुत्र जब एक आसन पर बैठेगा तब देवसमूह उनके केवल पृथ्वी तलस्पर्श एवं निमेषादि चिह्न से ही मुझे पहचान सकेंगे।'
सुमंगला के पुत्र की ऊँचाई के विषय में इन्द्र महाराज कहते हैं, 'हे सुमंगला ! तलवार से उग्र हाथ वाला यह आपका पुत्र हाथी पर चढ़कर जब रणसंग्राम में सन्नद्ध होगा तब कितने ही शत्रु राजा युद्ध से भागते हुए अपने शरीर की ऊँचाई एवं शरीर की गुरुता की निंदा करेंगे। पुनः आपके इस पुत्र के बाण पर लिखित अक्षरों को देखकर संग्राम किये बिना ही मद रहित होकर, मनुष्य ही क्या लेकिन मागधादिक देव भी नृत्य करके आपके पुत्र के दास रूप को प्राप्त करेंगे । '
कवि लिखता है कि :
अस्मिन् दधाने भरताभिधानमुपेष्यतो भूमिरियं च गीश्च । विद्वद्भुवि स्वात्मनि भारतीति ख्यातौ मुदं सत्प्रभुलाभजन्माम् ॥ ११-४३॥
हे सुमंगला! यह आपका पुत्र 'भरत' ऐसा नाम धारण करेगा जिससे यह भूमि और सरस्वती विद्वानों में अपना नाम 'भारती' ऐसा प्रख्यात होने से उत्तम स्वामी के लाभ से हर्षित होगी । पुनः सुमंगला! जैन सूत्रों में जैसे अर्थों का अभ्यास करने पर भी क्षय होता नहीं है वैसे ही जिसमें रहे हुए द्रव्यों को निकालने पर भी क्षय नहीं होता, ऐसे नौ निधानों की स्वाधीनता आपके पुत्र को प्राप्त होगी । कवि लिखता है :
उदच्यमाना अपि यांति निष्ठां, सुत्रेषु जैनेष्विव येषु नार्थाः ।
तेषां नवानां निपुणे निधीनां, स्वाधीनता वत्स्र्त्स्यति ते तनूजे ॥ ११-४४॥
हे देवी! कोटा कोटी वर्ष पर्यन्त साधर्मिकों को विविध प्रकार के भोज्य पदार्थों का भक्ति पूर्वक भोजन कराने वाले आपके इस पुत्र के भक्ति रस और भोजनरस के अतिशय रूप को कहने के लिये विद्वान भी समर्थ नहीं होंगे। कवि लिखता है :
(४४)
निवेशिते मूर्त्यमुना विहार-निभे मणिस्वर्णमये किरीटे ।
न सुभ्रु भर्ता किमुदारशोभां भूभृद्वरोऽष्टापदनामधेयः ॥ ११-४७ ॥
हे सुमंगला! यह आपका पुत्र प्रासाद पर मणि एवं सुवर्णमय मुकुट को शिखर पर रखेगा तब अष्टापद पर्वत की शोभा को धारण करेगा। आपके इस पुत्र ने पूर्वभव (पूर्वजन्म) में योगाभ्यास से मोक्षतत्त्व की आराधना की है, अतः मोक्षतत्त्व स्वरूप देखने से होने वाले मदकर्म के बंधन से ( अभिमान के बंधन से) वह उनकी रक्षा करेगा। इसलिये हे सुमंगला! पुरुषार्थ को विस्तृत करने में समर्थ, प्रभा के भंडार रूप एवं दरिद्रता का नाश करने में सक्षम ऐसे गर्भ में स्थित आपके पुत्र का, पृथ्वी में रहे हुए माणिक्य के समान प्रयत्नपूर्वक रक्षण करें। हे देवी! जैसे देवलोक में मैं स्वामी हूँ इस प्रकार मनुष्य लोक में वह स्वामी होगा एवं जब वह युवावस्था को प्राप्त होगा तब मेरी आत्मा-तुल्य मित्रों के संग का सुख प्राप्त करेगा।
इस प्रकार के वचनों से, वर्षा के शीतल पानी के समान मेघ की प्रशंसा को व्यर्थ करके, इन्द्र
[ जैन कुमारसम्भव: एक परिचय ]
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org