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इस दसवें सर्ग में कवि ने आरम्भ के 79 श्लोकों की स्वागता छंद में रचना की है। इस सर्ग में कुल 84 श्लोक हैं। सुमंगला ने अपने पति ऋषभदेव की वाणी का महिमागान, सुमंगला का वासभवन की तरफ गमन, वासभवन में पहुँचने पर कई सालों के स. विविध वार्तालाप, सखियों द्वारा कथावार्ता, नृत्यादि, छंद के माध्यम से षड्-दर्शन के विषय की चर्चा, सुमंगला के साथ बिताई गई रात एवं सूर्योदय होने की तैयारी में अंधकार के नाश का वर्णन कवि ने उपमादि अलंकारों द्वारा किया है।
__ सर्ग - ११ दिशा रूपी स्त्रियों के मुख को प्रसन्न करता हुआ, अंधकार रूपी शत्रुगणों का नाश करता हुआ और पर्वतों एवं राजाओं के मस्तक पर चरण रखता हुआ ग्रहों का अधिपति सूर्य का उदय हुआ।
अंधकार का नाश करना, कमल विकसित करना, तारों को भगाना, जल का शोषण करना, मार्ग को स्वच्छ करना आदि अनेक कार्य सूर्य को करने होते हैं । यह देख कर ब्रह्मा ने मानो सूर्य को एक हजार किरणों वाला बनाया है।
फिर कवि उत्प्रेक्षा करता हुआ कहता है :
तमो ममोन्मादमवेक्ष्य नश्यदेतैरमित्रं स्वगुहास्वधारि।
इति कुधेव धुपतिगिरीणां, मूर्भो जघानायतके तुदंडैः॥ ११-४॥
सूर्य अपने उन्माद को देख कर भागते हुए शत्रु-अंधकार को इन पर्वतों ने अपनी गुफा में रक्षण दिया है इससे मानो क्रोध से सूर्य ने स्वयं की विस्तृत किरण रूपी दंड से पर्वतों के शिखर पर प्रहार किया। अर्थात् सूर्य ने अपनी किरणे पर्वतों के शिखर पर डाली। उस समय कितने ही लोग ऐसा कहने लगे कि खारा पानी पीने से अतृप्त प्यास वाला वडनावल नदी एवं तालाब के स्वादिष्ट पानी पीने हेतु पूर्व समुद्र से आता है। चंद्र की अमृत झरने वाली किरणों के महोत्सव को जानने वाली एवं सूर्य के ताप को जानने वाली कुमुदिनी रात्रि जागरण के गौरव के बहाने से सुख से सरोवर में निद्रित हुई।
सूर्य के उदय से विकसित हुई पद्मिनी को देख कर, स्वामी रहित हुई कुमुदिनी जो स्वयं रात्रि में पद्मिनी के दुःख पर हंसी थी, उसने बंद होने के बहाने हाथ जोड़ कर क्षमा मांगी। रात्रि में कमलों ने शरीर से जिस चंद्र के किरण प्रहार को सहा था उस पराभव को, प्रभात ने सूर्य की किरणों का संग होने पर अंदर से निकलते भंवरों के बहाने वमन किया। पुनः उस समय अंधकार रूपी शेवाल के समूह को भेद कर, विस्तीर्ण किरणों वाले सूर्य रूपी हाथी के प्रवेश करने पर, आकाश रूपी सरोवर में से पूर्व में रहा हुआ तारक रूपी पक्षियों का समूह तत्काल उड़ गया। रात्रि में अल्प तेज वाले दीपकों ने पतंगों का नाश किया था, इसी कारण प्रभात में किसी उदय हुए पतंग (सूर्य) ने दीपकों का उच्छेद कर उस वैर की शुद्धि की।
सूर्यास्त होने पर अंधकार की वृद्धि हुई और अंधकार के जाने पर सूर्य प्रकाशित हुआ। फिर भी सूर्य 'अंधकार का छेदन करने वाला है ' इस प्रकार प्रसिद्ध हुआ। सचमुच! यश भी भाग्य से ही मिलता है । जिन उल्लूओं ने अंधकार के बल से कर्कश शब्द ध्वनि से लोगों के कानों को अशांति दी थी, वे ही उल्लू सूर्य द्वारा अंधकार के नाश को देख, मौन धारण कर, भयभीत होकर गुफाओं में छुप कर बैठ गये। अपनी ही किरणों से चक्रवाकों के हर्ष को एवं कमलों के विकास को विस्तृत करने वाले सूर्य ने पोष्यवर्ग के प्रति स्वाधीन अधिकार के स्वरूप वाली नीति का उल्लंघन नहीं किया। (४२)
[ जैन कुमारसम्भव : एक परिचय ]
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