________________
पुन: ध्वज को देखने से तेरा पुत्र कुसंग से उत्पन्न हुए दोषों से अस्पृष्ट शरीर वाला एवं गुणवान होकर महान उत्सव वाले विशाल कुल में मस्तक पर के मुकुट रूप को प्राप्त करेगा। पुनः वह जो कलश देखा है इससे उत्तम आचार वाला, देवों के समूह से पूजित, लक्ष्मी का एकमात्र अधिकारी ऐसा तेरा पुत्र अभंग मांगलिक की दशा को प्राप्त होगा।
तूने जो पद्मसरोवर देखा है इससे तेरा पुत्र संतुष्ट मित्रों से युक्त होकर, विकस्वर लक्ष्मी युक्त होकर एवं उत्तमों के रक्षण वाला होकर, गहन आगम से उत्पन्न हुए रस को धारण करेगा।
तूने क्षीर समुद्र देखा है इससे सम्पूर्ण रसमय वाणी का धारक एवं गंभीर और अनेक याचकों का आश्रय स्थल ऐसा तेरा पुत्र स्वयं की मर्यादा का कभी उल्लंघन नहीं करेगा।
फिर तूने विमान देखा है इससे भोग सहित वृद्धि को प्राप्त करने वाला, देवों को प्रिय ऐसी लक्ष्मी वाला एवं अत्यन्त श्रेष्ठ ज्ञान वाला तेरा पुत्र होगा।
फिर तूने रत्नों का समूह देखा है, इससे मर्यादाओं के प्रति विचित्र प्रकार के औचित्य को धारण करता तेरा पुत्र इस जगत में उत्कृष्ट तेजस्वी शरीर को धारण कर, भूमंडल के महान राजाओं से पूजित होगा।
फिर हे देवी! तुने निर्धूम अग्नि को देखा है; इससे उत्तम रस के उपभोग से स्फुरायमान तेज वाला, अत्यन्त बुद्धिमान एवं कांति के हेतुभूत ऐसे अस्त्रों को धारण करने वाला तेरा पुत्र पतंगियों की तरह क्षणमात्र में शत्रु को भस्म कर देगा।'
सुदुर्वचं शास्त्रविदामिदं मया, फलं स्वसंवित्तिबलादलापि ते। दुरासदं यव्यवसायसोष्मणां, सुखं तदाकर्षणमांत्रिकोऽश्नुते॥ ९-७५॥
हे सुमंगला! शास्त्रवेत्ता को भी अगम्य ऐसा इन स्वप्नों का फल मैंने तुझे मेरे ज्ञान के बल से कहा है, कारण कि व्यवसायी आदमियों को जो दुर्गम है उसे मांत्रिक सुख से जान सकते हैं।
इस प्रकार आवास में रहकर बोलने वाले श्री ऋषभदेव प्रभु को, 'हे संशय रूपी क्षयरोग को मिटाने में उत्तम राज्य वैद्य समान प्रभु! आप जय प्राप्त करें। ऐसे बोलते हुए हर्षित होकर आकाश में रहे देवों ने पुष्पों की वृष्टि की।
इस प्रकार स्वामी के वचन सुन कर सुमंगला अत्यन्त हर्षित हुई और उसका शरीर भी रोमांचित हुआ।
इस सर्ग में श्री ऋषभदेव प्रभु कौन से स्वप्न फल देने वाले हैं एवं कौन से निष्फल हैं वह बताते हैं, पुण्यरहित स्त्रियों की अपेक्षा सुमंगला की उत्कृष्टता को दर्शाते हैं, ऐसे महान स्वप्नों का दर्शन उत्तम फल देने वाले हैं उसका वर्णन, तीर्थंकर, चक्रवर्ती, वासुदेव, बलदेव, मांडलिक आदि की मातायें अनुक्रम से अत्यन्त तेजस्वी चौदह स्वप्न, थोड़े से अस्पष्ट चौदह स्वप्न, सात स्वप्र, चार स्वप्न एवं एक स्वप्न देखते हैं। ये प्रत्येक स्वप्न पुत्र की कैसी अलग-अलग महत्ता का सूचन करते हैं उसका प्रभु माहात्म्य बताते हैं, उस समय उन पर देवता पुष्पवृष्टि करते हैं। स्वप्न फल सुन कर सुमंगला रोमांचित होती है । इस प्रकार पूरा नौवें सर्ग की रचना कवि ने स्वप्रों एवं उसके फलों का वर्णन करने हेतु की है।
(३८)
[ जैन कुमारसम्भव : एक परिचय ] For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
Jain Education International