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स्थान पर सोने से प्राणी जो स्वप्न देखते हैं वे स्वप्र सोचने योग्य नहीं हैं । मल-मूत्र की बाधा से, भय से, देखने या सुनने से जो स्वप्न देखते हैं वे फल देते नहीं। अधिक धर्म करने वाला आदमी स्वप्न देखे तो वे फलदायी होते हैं। पुनः हे देवी! आपका कुल निर्मल है, आपकी बुद्धि पाप-विमुख है, आपकी वाणी शरदऋतु की चंद्र किरणों का अनुकरण करती है, हंसी समान आपकी चाल है, आपका शरीर-लावण्य अपार मंगल रूप है, आपके गुण वाचाल कवीश्वर रूप है। ये सभी आपको पूर्वजन्म में किये पुण्यों से प्राप्त हुए हैं। इंद्राणी, देवांगनायें, नाग कन्यायें हमेशा आपकी सेवा करती हैं। इस प्रकार आप तीनों जगत की स्त्रियों में उच्च स्थान रखती हैं। पुनः हे प्रिये! उज्ज्वल गुणों वाला देखा हुआ स्वप्न समूह उत्तम मणि के समान वृथा नहीं होता है । बरसात के एणनी से जैसे लतायें वैसे ही गर्भ प्रमाण गुणों के अनुभाव वाले इन स्वप्नों से नई लक्ष्मी उत्पन्न होती है एवं वह लक्ष्मी गृहीत आश्रय से रस युक्त होती है। निर्दोष बुद्धि से उत्पन्न हुए ऐसे ये स्वप्न रसायन तुल्य होते हैं। इससे स्वजनों से समृद्ध कुल में नये रोग वास नहीं करते हैं एवं पुराने रोग भी शांत होते हैं।
चतुर्दशस्वप्ननिभालनद्रुम - स्तनोत्यसौ मातुरुभे शुभे फले।
इहैकमर्हज्जननं महत्फलं, तनु द्वितीयं ननु चक्रिणो जनुः॥९-२९॥
इस जगत में इन चौदह स्वप्न-दर्शन रूपी वृक्ष माता को दो उत्तम फल देते हैं। इसमें एक तो अरिहंत प्रभु के जन्मरूपी महान फल देते हैं और दूसरा चक्रवर्ती के जन्म रूप सूक्ष्म फल देते हैं । सात स्वप्र-दर्शन वासुदेव की उत्पत्ति का सूचन करते हैं। चार स्वप्न दर्शन बलदेव एवं उनमें से एक स्वप्न दर्शन मांडलिक पुत्र जन्म की सूचना देते हैं। इसलिये हे देवी! इस प्रकार के चौदह स्वप्न देखने से आपका पुत्र चक्रवर्ती होगा।
त्वया यदादौ हरिहस्तिसोदरः, पुरः स्थितस्तन्वि करी निरीक्षितः। मनुष्यलोकेऽपि ततः श्रियं पुरा, दधाति शातक्रतवीं तवांगजः॥९-३३॥
हे सूक्ष्मांगी सुमंगला! तुमने पहले स्वप्न में औरावत हाथी के समान हाथी देखा जिससे आपका पुत्र मनुष्यलोक में भी इन्द्र सम्बन्धी लक्ष्मी को धारण करेगा। अक्षीण शोभायुक्त एवं पृथ्वी पर चार पैर से प्रतिष्ठित हुआ वृषभ जो तुमने देखा, इससे तेरा पुत्र सहस्रयोधी सुभटों का अग्रेसर बनकर वीरों की धुरा को धारण करेगा।
न्याय से प्राप्त सप्तांग राज्य की रणभूमि के संवाहक एवं बलिष्ठ अस्त्र-शस्त्र धारक हे स्वामी! आप कहाँ? और न्याय की निपुणता के बिना वन में रहने वाला पशुओं का स्वामी तथा नाखून रूपी आयुध वाला ऐसा मैं कहाँ? फिर भी आप क्रोध मत करना, कारण कि पराक्रम से युद्ध में विचक्षणजन मेरे साथ आपकी तुलना करेंगे! इस प्रकार प्रार्थना करता हुआ केशरीसिंह जैसे तेरे पुत्र के पास आया हो, ऐसा तूने इस स्वप्न में देखा । तूने चौथे स्वप्न में लक्ष्मी को देखा, इसलिये वह लक्ष्मी समान सैकड़ों स्त्रियाँ तेरे पुत्र को प्राप्त होंगी। पुनः हे देवी! अपनी सुगंध से भ्रमर रूपी पथिकों को आकर्पित करने वाली पुष्पों की माला को तूने देखा, जिससे तेरा पुत्र अपनी कीर्ति रूपी सुगंध से तीनों जगत को व्याप्त करने वाला होगा। पुन: वह पूर्णिमा का गोल आकार वाला एवं रात्रि में अत्यन्त तेजस्वी ऐसा जो चंद्र देखा है इससे सर्वदा पृथ्वी को हर्षित एवं शोभित करने वाला एवं कलाओं के समूह वाला तेरा पुत्र होगा। पुनः सूर्य को देखने से हमेशा गुणों का स्थानभूत, स्त्रियों के सुगंधित मुखकमल को प्रकाश देने वाला तेरा पुत्र दोषरहित तेज को प्राप्त करेगा। [ जैन कुमारसम्भव : एक परिचय ]
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