________________
ऋषभदेव को इन्द्र विवाह हेतु विनती करते हैं, इन्द्र ऋषभदेव (कुमार) के विवाह की सामग्री तैयार करते हैं, विवाह मण्डप की रचना की जाती है, इन्द्राणी सुमंगला एवं सुनंदा के शरीर का श्रृंगार करती हैं आदि का वर्णन है। सर्ग : 4 - कवि ने इस सर्ग की रचना 80 श्लोकों में की है। उसमें ऋषभकुमार के विवाह के अवसर पर देवताओं का आगमन, देवताओं द्वारा की गई विविध चेष्टाओं का वर्णन, इन्द्र ऋषभकुमार के देह का श्रृंगार करते हैं उसका वर्णन, ऐरावत हाथी का वर्णन, ऋषभकुमार के विवाह की बारात का वर्णन, देवांगनाओं के परस्पर आलाप का वर्णन एवं अंत में विवाह की लौकिक विधि का वर्णन किया गया है। सर्ग :5 - इस सर्ग की 85 श्लोकों में रचना की गई है। इसमें वर-कन्या के हस्तमेलाप का, वरकन्या के मंगल फेरे का, करमोचनादि विधि का, इन्द्र विविध उत्तम वस्तुयें ऋषभकुमार को विवाह प्रसंग पर देते हैं उसका, वर-कन्या कसार (लापसी) भोजन करते हैं उसका, ऋषभकुमार के सामने इन्द्र नृत्य करते हैं उसका, प्रभु को देखने आई नगर की स्त्रियों का एवं इन्द्र ने ऋषभकुमार को और इन्द्राणी ने सुमंगला एवं सुनंदा को जो हित शिक्षा दी आदि का वर्णन किया गया है। सर्ग : 6 - कवि ने इस सर्ग की रचना 74 श्लोकों में की है, इसमें चन्द्रोदय का, अंधकार का, सुमंगला के शील का, ऋतुओं का एवं सुमंगला के गर्भ धारण का वर्णन किया गया है। सर्ग :7 - इसकी रचना 77 श्लोकों में की गई है। इसमें कवि ने सुमंगला के वासभवन का, सुमंगला के निद्राधीन होने का एवं चौदह महास्वप्नों का दर्शन, स्वप्नफल जानने हेत स्वामी के समीप सुमंगला के आगमन का वर्णन किया है। सर्ग : 8 - इस सर्ग की रचना 68 श्लोकों में की गई है। इसमें सुमंगला को स्वयं के पास आई जान कर प्रभु ऋषभ उससे कुशल-क्षेम पूछते हैं, सुमंगला प्रभु के गौरव का वर्णन करती है एवं उन स्वप्नों का वर्णन कर उनका फल पूछती है, प्रभु चौदह स्वप्नों की फल-महिमा समझाते हैं इत्यादि का वर्णन कवि ने किया है। सर्ग : 9 - इस सर्ग की रचना 80 श्लोकों में की गई है। ऋषभदेव स्वप्न के विषय में सोचते हैं, फिर प्रभु सुमंगला की महिमा का वर्णन करते हैं एवं उसके बाद प्रभु स्वप्नफल का निर्देश करते हैं आदि विषय का वर्णन इसमें किया गया है। सर्ग : 10 - कवि ने इस सर्ग की रचना 84 श्लोकों में की है। सुमंगला ऋषभदेव की वाणी की महिमा का वर्णन करती है, सुमंगला वापस अपने आवास में आती है, सुमंगला की सखियाँ उसके साथ बातचीत करती है एवं सुमंगला उसका प्रत्युत्तर देती है, सखियों के साथ धर्मकथा करती है, अंधकार का विनाश होता है, आदि का वर्णन इसमें किया गया है। सर्ग : 11 - कवि ने 70 श्लोकों में इस सर्ग की रचना की है। इसमें सूर्योदय, इन्द्रागमन, इन्द्र द्वारा सुमंगला की प्रशंसा, सुमंगला इन्द्र के जाने से खेद प्रकट करती है, सुमंगला को उसकी सखियाँ स्नानादि क्रिया कराती हैं आदि प्रसंगों का वर्णन किया गया है।
'जैनकुमारसम्भव' की रचना कवि ने कैसी की है एवं प्रत्येक सर्ग में कथा प्रसंगों, प्रकृति वर्णन, परिस्थिति इत्यादि का कैसा निरूपण किया है उसका अवलोकन करें। (१८)
[ जैन कुमारसम्भव : एक परिचय ]
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org