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________________ जैन कुमारसम्भव : एक परिचय - डॉ. साध्वी मोक्षगुणाश्री जैसे जैन आगमग्रन्थों का उस पर रची नियुक्ति, चूर्णि, टीका आदि प्रकार का अन्य जैन शास्त्रीय साहित्य अत्यन्त समृद्ध है, वैसे ही जैन पुराण, महाकाव्य, चरित्र, काव्य आदि प्रकार का सर्जनात्मक ललित साहित्य भी अत्यन्त समृद्ध है। पद्मपुराण, हरिवंश पुराण, आदि पुराण, उत्तर पुराण, शान्ति पुराण, वर्धमान पुराण, पाण्डव पुराण, त्रिषष्टिशलाका पुरुष चरित्र, कुमारपालचरित, प्रद्युम्न चरित्र महाकाव्य, श्रीधर चरित्र महाकाव्य, तिलकमंजरी कथा, कुवलयमाला, शान्तिनाथ चरित्र, नेमिनाथ चरित्र, पार्श्वनाथ चरित्र, महावीर चरित्र, नलायन महाकाव्य आदि संख्याबंध सुदीर्घ, महान कृतियों का सर्जन जैन कवियों के द्वारा संस्कृत एवं प्राकृत भाषा में हुआ है। जैन तीर्थंकरों के चरित्र एवं उसमें भी ऋषभदेव, शान्तिनाथ, नेमिनाथ, पार्श्वनाथ, महावीरस्वामी आदि के चरित्र भी अत्यन्त समृद्ध हैं। इसी प्रकार महान जैनाचार्यों, राजवियों, श्रेष्ठियों आदि के चरित्र भी अत्यन्त समृद्ध हैं । तदुपरांत अलग-अलग पवित्र जैन तीर्थों के इतिहास भी विवरण सहित हम को मिलते हैं । इस सामग्री का आधार लेकर कोई काव्य या महाकाव्य का सर्जन किसी कवि को करना हो तो विपुल काव्यानुकूल सामग्री जैन इतिहास में उपलब्ध है। महान् कविगण स्वयं की कवि-प्रतिभा के अनुरूप, सामग्री का चयन कर स्वयं की काव्य-कृति का सर्जन समय-समय पर करते रहे हैं। कवि-परिचय 'उपदेश चिन्तामणि''धम्मिलकुमार चरित्र' आदि काव्य के रचयिता महाकवि श्री जयशेखरसूरि संस्कृत भाषा के प्रकाण्ड पंडित थे। उस समय के जैन एवं जैनेतर वर्ग में इसके लिये उनकी कीर्ति अच्छी तरह प्रसरित रही। इसी कारण जैनेतर वर्ग के कवि-पंडितों को एवं साहित्यरसिकों को भी पढ़ना अच्छा लगे वैसी कृति की रचना करने हेतु वे प्रेरित हुए होंगे और उसी के फलस्वरूप 'जैनकुमारसम्भव' नाम का महाकाव्य हम को मिलता है। श्रावक भीमसी माणेक, मुंबई की ओर से यह महाकाव्य सर्वप्रथम प्रकाशित हुआ था। वि.सं. 1956 में मूल श्लोक एवं पंडित हीरालाल हंसराज, जामनगर द्वारा कृत गुजराती अनुवाद के साथ यह महाकाव्य देवनागरी लिपि में पत्राकार रूप में प्रकट हुआ था। उसमें काव्य की संस्कृत टीका छपी नहीं थी। उसके बाद यह महाकाव्य महोपाध्याय धर्मशेखर कृत संस्कृत टीका के साथ जामनगर की आर्यरक्षित पुस्तकोद्धार संस्था की तरफ से वि.सं. 2000 में प्रकट हुआ था। उसके बाद यह महाकाव्य (१४) [ जैन कुमारसम्भव : एक परिचय ] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002679
Book TitleJain Kumarsambhava Mahakavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayshekharsuri
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2003
Total Pages266
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size12 MB
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