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हिन्दी अनुवाद के साथ प्रकाशित कराने की मेरी इच्छा थी, किन्तु प्राकृत भारती अकादमी ने मात्र हिन्दी अनुवाद के प्रकाशन में रुचि ली, अत: सानुवाद मूल का प्रकाशन किया जा रहा है। ग्रन्थ के प्रकाशन में जैनविद्या संस्थान महावीरजी के निदेशक आदरणीय डॉ. कमलचन्द्र सोगाणी ने पूरी रुचि ली और उत्साहपूर्वक इसका प्रकाशन प्राकृत भारती अकादमी जयपुर से कराया। साहित्य वाचस्पति श्रद्धेय महोपाध्याय श्री विनयसागर जी के सत्प्रयास से संस्था इस ग्रंथ का प्रकाशन कर रही है। प्राकृत भारती अकादमी के निदेशक के रूप में उनकी भूमिका सराहनीय है। अकादमी की कमेटी ने इसका सुरुचिपूर्ण प्रकाशन कराया तथा स्टाफ ने भी पूरा-पूरा सहयोग दिया, एतदर्थ सभी महानुभावों के प्रति मैं अपनी हार्दिक कृतज्ञता ज्ञापित करता हूँ। अकादमी इसी प्रकार उदारता से प्राचीन जैन ग्रन्थों को प्रकाशन में लाने का महत्त्वपूर्ण दायित्व निभाएगी, ऐसी पूर्ण आशा है। श्री जयशेखरसूरि कृत भगवान् ऋषभदेव का कौमार वर्णन अनुपम है। पाठक अवश्य ही इसका रसास्वादन करेंगे। जैनं जयतु शासनम्।
विनीत रमेशचन्द जैन
[ प्रस्तावना]
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