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________________ आदिपुराण और जैनकुमारसम्भव भगवान् ऋषभदेव का जीवन वृत्तान्त आचार्य जिनसेन ने आदिपुराण में लिखा है। आदिपुराण तथा जैनकुमारसम्भव के कथानक में कुछ अन्तर है शादिपुर, “ में कहा गया है कि पिता नाभिराय ने स्वयं भगवान् की यौवन अवस्था देखकर उनसे विवाह हेतु आग्रह किया। भगवान् ने ओम कहकर उनके वचन स्वीकार कर लिए । जैनकुमारसम्भव के अनुसार उनसे विवाह करने हेतु इन्द्र ने अनुरोध किया। लोकस्थिति का पालन, लोकानुरोध, लोकोपकार' अथवा लोक प्रवृत्ति को हेतु रूप में उपस्थित किया गया है। आदिपुराण के अनुसार इन्द्र की अनुमति से सुशील, सुन्दर लक्षणों वाली, सती और मनोहर आकार वाली दो कन्याओं की महाराज नाभिराय ने याचना की। ये दोनों कन्यायें कच्छ और महाकच्छ की बहनें थीं तथा उनका नाम यशस्वती और सुनन्दा था । इन्हीं के साथ नाभिराय ने भगवान् का विवाह कर दिया। जैनकुमारसम्भव के अनुसार सुमङ्गला जो भगवान् के साथ में उत्पन हुई थी तथा सुनन्दा, जिसे नाभिराय ने गोद में बढ़ाया था, उनके साथ ऋषभदेव का विवाह हुआ। आचार्य जिनसेन के अनुसार यशस्वती (जिससे भरत का जन्म हुआ था) ने सोते समय पृथिवी, सुमेरु पर्वत, चन्द्र सहित सूर्य, हंस सहित सरोवर तथा चञ्चल लहरों वाला समुद्र ये पाँच स्वप्न देखे थे। श्री जयशेखर सूरि के अनुसार सुमङ्गला (जिससे भरत का जन्म हुआ था) ने सोते समय गजेन्द्र, वृषभ, सिंह, लक्ष्मी, पुष्पमाला, चन्द्रमा, सूर्य, ध्वज, कुम्भ, तालाब, समुद्र, विमान, रत्नराशि और अग्नि ये १४ स्वप्न देखे थे११ । आदिपुराण क अनुसार प्रात: काल यशस्वती ने भगवान् से स्वप्नों का फल पूछा। जैनकुमारसम्भव के अनुसार सुमङ्गला ने रात्रि में ही भगवान् के पास जाकर स्वप्न पूछे। दोनों ग्रन्थों में स्वप्न का फल तेजस्वी, चक्रवर्ती पुत्र की प्राप्ति बतलाया गया है। आभार प्रदर्शन जैनकुमारसम्भव महाकाव्य का हिन्दी अनुवाद दिनाङ्क १७ अप्रैल, १९९२ को प्रारम्भ हुआ था और २७ नवम्बर १९९२ को समाप्त हुआ था। कृति के अनुवाद में ग्रन्थकर्ता श्री जयशेखरसूरि के शिष्य श्री धर्मशेखरमहोपाध्याय द्वारा रचित संस्कृत टीका से पूरी मदद मिली। इस ग्रन्थ को सान्वय एवं - १. आदिपुराण १५ । ५०-६६ । २. जैनकुमारसम्भव ३ । २१ ३. लोकस्थिति पालय लोकनाथम् जैनक.सं. ३। २५ ४. तावत्कलत्रमुचितं चिन्त्यं लोकानुरोधतः। आदिपुराण १५ । ५३ ५. त्वयोपकारो लोकस्य करणीयो जगत्पते ॥ वही १५ । ५६ ६. त्वमादिपुरुषं दृष्ट्वा लोकोऽप्येवं प्रवर्तताम्। वही १५।६१ ७. वही १५ । ६९-७० ८. त्वमैव याऽभूत्सहभू॥ जैनकु.सं. ३ । २६ ९. अवीवृधांदधदङ्कमध्येनाभिः सनाभिजलधर्महिना । वही ३ । २७ १०. आदिपुराण १५ । १०० । १०१ ११. जैनकु.सं. सर्ग-७ (१२) [ प्रस्तावना ] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002679
Book TitleJain Kumarsambhava Mahakavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayshekharsuri
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2003
Total Pages266
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size12 MB
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