________________
आकाशमार्ग में तारागण अत्यधिक विरल होकर अस्त हो गए। ठीक ही है नायक के । दृढीकार के अभाव में सेना में बल कितना होता है।
गम्भीराम्भःस्थितमथजपन्मुद्रितास्यं निशायामन्तर्गुञ्जन्मधुकरमिषानूनमाकृ ष्टिमन्त्रम्। प्रातर्जातस्फुरणमरुणस्योदये चन्द्रबिम्बा
दाकृष्याब्जं सपदि कमलां स्वाङ्कतल्पीचकार॥८४॥ अर्थ :- गम्भीर जल में स्थित निश्चित रूप से रात्रि के मध्य में गुंजन करते हुए भौरे के बहाने से जिसका मुख ढक गया है ऐसा होने पर आकर्षण मन्त्र का जाप करते हुए प्रातः जिसे मन्त्र की सिद्धि हुई है ऐसे कमल ने लक्ष्मी को चन्द्रबिम्ब से खींचकर शीघ्र ही अपनी गोद रूप शय्या पर रख दिया।
सूरिः श्रीजयशेखरः कविघटाकोटीरहीरच्छवि, र्धम्मिल्लादिमहाकवित्वकलनाकल्लोलिनीसानुमान्। वाणीदत्तवरश्चिरं विजयते तेन स्वयं निर्मिते,
सर्गो जैनकुमारसम्भवमहाकाव्ये दिशासङ्ख्यभाग्॥१॥ कवियों के समूह रूप मुकुट में हीरे की छवि वाले, धम्मिल्लकुमारचरितादि महाकवित्व से युक्त नदी के प्रवाह के लिए पर्वत के तुल्य, वाणी से प्रदान किए गए वर वाले श्री जयशेखर सूरि चिरकाल तक विजयशील रहें । उनके द्वारा स्वयं निर्मित जैनकुमारसम्भव महाकाव्य में यह दिशाओं की संख्या वाला अर्थात् दसवाँ सर्ग समाप्त हुआ। इति श्रीमदञ्चलगच्छ में कविचक्रवर्ति श्री जयशेखरसूरि विरचित
जैनकमारसम्भव महाकाव्य का दशम सर्ग समाप्त हुआ।
100
(१५८)
[जैन कुमारसम्भव महाकाव्य, सर्ग-१०]
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org