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________________ 29. गुणग्राही 30. सुपात्रग्राही 31. क्षमी 32. परिभावुक । ये 32 लौकिक नायक के गुण कहे जाते हैं। आङ्गिकाभिनयविज्ञयाऽन्यया, शस्तहस्तकविहस्तहस्तया। एतदीयहदिपूरितं मरु-लोलपल्लवलताकुतूहलम्॥ ६९॥ अर्थ :- आङ्गिक अभिनय को जानने वाली प्रशस्त (६४) हस्तकों में व्याकुल दोनों हाथ वाली अन्य स्त्री ने सुमङ्गला के हृदय में वायु से चञ्चल पल्लवों वाली लता के कुतूहल को भर दिया। अप्युरःस्तननितम्बभारिणी, काचिदुल्लसदपूर्वलाघवा। लास्यकर्मणि विनिर्मितभ्रमि-निर्ममे विधृतकौतुकं न कम्॥७०॥ अर्थ :- वक्षःस्थल, स्तन और नितम्ब के भार वाली, नाट्यकर्म में जिसका अपूर्व लाघव प्रकट है तथा जो घूम रही है ऐसी किसी स्त्री ने किसे कौतुकधारी नहीं बनाया, अपितु सबको बनाया। शृण्वती धवलबन्धबन्धुरं, स्वामिवृत्तमुपगीतमन्यया। स्माह कुण्डनवकाधिकं सुधा-स्थानमास्यमिदमीयमेव सा॥७१॥ अर्थ :- धवल रचना से सुन्दर गाए गए स्वामी के चारित्र को श्रवण करती हुई उस सुमङ्गला ने इसके इस मुख को नव कुण्डों से भी अधिक अमृत का स्थान कहा था। साधितस्वरगुणा ऋजूभव - देहदण्डतततुम्बकस्तनी। .. कापि नाथगुणगानलालसा, व्यर्थतां ननु निनाय वल्लकीम्॥७२॥ अर्थ :- नाथ के गुणों का गान करने की अभिलाषिणी, जिसने स्वर के गुणों को साधा है (पक्ष में-जिसकी तन्त्री साधितस्वर है), सरल होते हुए देहदण्ड में जिसके तूंबे के आकार के दोनों स्तन विस्तीर्ण हैं ऐसी किसी स्त्री ने निश्चित रूप से वीणा की व्यर्थता को ला दिया। विशेष :- कोई स्त्री श्री ऋषभदेव के वंश, विद्या, विनय, विजय, विवेक, विचार, सदाचार तथा विस्तार प्रभृति ८६ गुणों के गान में तत्पर थी। उसने स्वर के गुणों की साधना की थी। सात स्वर होते हैं, तीन ग्राम होते हैं, २१ मूर्च्छनायें होती हैं तथा ४९ ताने होती हैं, ये गीत का लक्षण है । गीत के विषय में नियम है कि आदि में नकार, मध्य में यकार और अन्त में हकार नहीं रखना चाहिए। ये तीनों गीत के वैरी हैं। कहा गया है नामाक्षरो यदुद्गाने भवेत्तत्र न संशयः। हकारो वा घकारो वा रेफो वापि कुलक्षयः॥ (१५४) [जैन कुमारसम्भव महाकाव्य, सर्ग-१०] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002679
Book TitleJain Kumarsambhava Mahakavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayshekharsuri
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2003
Total Pages266
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size12 MB
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