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________________ सद्गुणा का अर्थ सांख्य पक्ष में विद्यमान सत्व, रज और तमोगुण है । प्रकृति का अर्थ प्रधान है। प्रकृति से महत्तत्व, उससे अहंकार तथा उससे षोडश गण, षोडश गणों से पञ्चभूत इस प्रकार सृष्टि होती है। उस समय आत्मा अकर्ता होने से साक्षिमात्र रहता है। जैसे राजसभा में राजा के बैठकर देखते समय कोई नर्तकी नृत्य करती है, इस प्रकार यहाँ भी जानना चाहिए। तां विधाय शुचिरागसम्भवन्मूर्छनाभिरुपनीतमूर्च्छनाम्। सौगतं ध्वनिगतं तदुद्भवा-भावदूषणमलुप्त काचन॥ ६३॥ अर्थ :- पवित्र राग से उत्पन्न मूर्च्छनाओं से उत्पन्न मूर्छा वाली कर किसी स्त्री ने सुगत प्रणीत शब्दगत ध्वनि से उत्पन्न अभावरूप दोष का लोप कर दिया। विशेष :- बौद्ध में सुगत देव हैं। विश्व क्षणक्षयिक है । क्षणक्षयिक होने के कारण से अमुक से अमुक वस्तु उत्पन्न होती है, यह नहीं कहना चाहिए। बौद्धों के यहाँ कहा गया है... यो यत्रैव स तत्रैव यो यदैव तदैव सः। न देशकालयोाप्तिभावानामिह विद्यते॥ अर्थात् जो जहाँ है, वह वहीं है, जो जब है, वह तभी है, इस संसार में पदार्थों की देशकाल में व्याप्ति नहीं है। यदि राग से उत्पन्न मूर्च्छनाओं से सुमङ्गला के मूर्छा हुई तो राग के क्षणक्षयत्व नहीं है। यदि राग क्षयी है तो मूर्च्छना कैसे उत्पन्न होती है। अतः शब्द का ध्वनि से उत्पन्न होने का अभाव है। तत्त्वषोडशकतोऽधिकं स्वकं, गीततत्त्वमुपनीतनिर्वृति। व्यञ्जतीह विधिनाच्युते न का-प्यक्षपादमतमन्यथाकृत॥ ६४॥ . अर्थ :- षोडश तत्त्वों से अधिक अस्खलित विधि से समाधि को पास लाकर गीत को प्रकट करती हुई किसी स्त्री ने अक्षपाद के मत को अन्यथा कर दिया। विशेष :- नैयायिक मत में प्रमाण, प्रमेय, संशय, प्रयोजन, दृष्टान्त, सिद्धान्त, अवयव, तर्क, निर्णय, वाद, जल्प, वितण्डा, हेत्वाभास, छल, जाति और निग्रह स्थान रूप षोडश तत्त्व हैं। उनके यहाँ सृष्टि तथा संहारकर्ता महेश्वर देव हैं। अच्युत अर्थात् कृष्ण की विधि से समाधि को प्राप्त करने से षोडश से अधिक अर्थात् 17 तत्त्व हो जाते हैं। विश्रुतस्वरगुणश्रुतेः परं, या प्रपञ्चमखिलं मृषादिशत्। मूर्च्छनासमयसंकुचदृशां, सा न किं परमहंसतां गता॥६५॥ (१५२) [जैन कुमारसम्भव महाकाव्य, सर्ग-१०] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002679
Book TitleJain Kumarsambhava Mahakavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayshekharsuri
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2003
Total Pages266
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size12 MB
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