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________________ अर्थ :- हे प्रिये ! अतः ऐसे स्वप्न के देखने से तुम निश्चित रूप से चक्रधर पुत्र प्रास करोंगी। चतुर्दश विद्या जिस पुत्र में प्रवेश करती हैं, उस चतुर्दश संख्या से रत्न भी सेवन किए जाते हैं। त्वया यदादौ हरिहस्तिसोदरः, पुरः स्थितस्तन्वि करी निरीक्षितः। मनुष्यलोकेऽपि ततः श्रियं पुरा, दधाति शातक्रतवीं तवाङ्गजः॥३३॥ अर्थ :- हे दुर्बल शरीर वाली! तुमने जो आदि में ऐरावत का बान्धव हाथी सामने देखा उससे तुम्हारा पुत्र मनुष्य लोक में भी इन्द्र की लक्ष्मी को आगे धारण करेगा। दिगन्तदेशांस्तरसा जिगीषया, ऽभिषेणयिष्यन्तमवेत्य तेऽङ्गजम्। प्रहीयते स्म प्रथमं दिशां गजैः, प्रिये किमैरावत एष सन्धये ॥३४॥ अर्थ :- हे प्रिये ! तुम्हारे पुत्र को वेगपूर्वक दिशाओं के छोर के देशों को जीतने की इच्छा से जाते हुए जानकर दिग्गजों के द्वारा यह ऐरावत प्रथम संधि के लिए क्या भेजा गया था? विशेष :- आठ दिग्गज होते है-1. ऐरावत 2. पुण्डरीक 3. वामन 4. कुमुद 5. अञ्जन 6. पुष्पदन्त 7. सार्वभौम और 8. सुप्रतीक। यदक्षतश्रीवृषभो निरीक्षितः,क्षितौ चतुर्भिश्चरणैः प्रतिष्ठितः। महारथाग्रेसरतां गतस्तत-स्तवाङ्गभूर्वीरधुरां धरिष्यति ॥ ३५॥ अर्थ :- जो पृथ्वी पर चार चरणों से प्रतिष्ठित अक्षत लक्ष्मी वृषभ देखा है, हे प्रिये ! उससे तुम्हारा पुत्र महारथ के अग्रगामित्व को प्राप्त हुआ वीर पुरुषों की धुरा को धारण करेगा। सुपर्वलोकाद्यदिवा तवाङ्गजे, प्रवेशमात नि भूतले नवम्। अहो महोक्षः किमसौ पुरोऽस्फुर-नदन्नदभ्रं शकुनप्रदित्सया॥३६॥ अर्थ :- हे प्रिये ! आश्चर्य है, महावृषभ देवों के लोक से तुम्हारे पुत्र को पृथ्वी पर नए प्रवेश करने पर महान् शब्द करता हुआ शकुन प्रदान करने की इच्छा से क्या सामने प्रकट हुआ? जिनेषु सर्वेषु मयैव लक्ष्मणा, जनेन तातस्तव लक्षयिष्यते। अयं चटूक्तयेत्यथवा तवात्मजा-त्प्रसादमासादयितुं किमापतत्॥३७॥ अर्थ :- अथवा यह वृषभ लोगों के द्वारा समस्त जिनों में मेरे ही लाञ्छन से तुम्हारे पिता को लक्षित करेगा, इस चाटुकारी की उक्ति से हे प्रिये ! तुम्हारा पुत्र उसकी कृपा प्राप्त करने के लिए ही क्या आया? (१३२) तित कमारसम्भव महाकाव्य, सर्ग-९] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002679
Book TitleJain Kumarsambhava Mahakavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayshekharsuri
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2003
Total Pages266
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size12 MB
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