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________________ स्त्रीमात्रमेषास्मि तव प्रसादा-देवादिदेवाधिगता गुरुत्वम्। राज्ञो हृदि क्रीडति किं न मुक्ता-कलापसंसर्गमुपेत्य तन्तुः॥२२॥ अर्थ :- हे आदिदेव! ये मैं स्त्रीमात्र (साधारण स्त्री) हूँ। आपकी कृपा से ही महत्त्व को प्राप्त हुई हूँ । तन्तु मोतियों के समूह के संसर्ग को पाकर राजा के हृदय में क्या क्रीडा नहीं करता है? अपितु करता है। मां मानवी दानववैरिवध्वो, याचन्ति यत्प्राञ्जलयोऽङ्गदास्यम्। सोऽयं प्रभावो भवतो न धेयं, भस्मापि भाले किमु मन्त्रपूतम्॥२३॥ अर्थ :- देवाङ्गनायें हाथ जोड़कर मनुष्य जाति की होने पर भी जो मेरे शरीर की दासता की याचना करती हैं, वह आपका प्रभाव है । राख भी यदि मन्त्र से पवित्र हो तो क्या मस्तक पर धारण करने योग्य नहीं है? अपितु अवश्य है। त्वत्सङ्गमात् सङ्गमितेन दिव्य-पुष्पैर्मदङ्गेन विदूरितानि। वैराग्यरङ्गादिव पार्थिवानि, वनेषु पुष्पाण्युपयान्ति वासम्॥२४॥ अर्थ :- हे नाथ! आपके मिलन से मिले हुए मेरे अङ्ग से दूर किए गए पार्थिव पुष्प मानों वैराग्य के रङ्ग से वन में वास प्राप्त करते हैं। __ 'अङ्गेषु मे देववधूपनीत-दिव्याङ्गरागेषु निराश्रयेण। नाथानुतापादिव चन्दनेन, भुजङ्गभोग्या स्वतनुर्वितेने ॥२५॥ अर्थ :- हे नाथ! मेरे देव वधुओं के द्वारा लाए दिव्य अङ्गराग से युक्त अङ्गों पर निराश्रय चन्दन ने अपने शरीर को मानों पश्चाताप से ही सर्पवेष्टित कर दिया। स्वर्भूषणैरेव मदङ्गशोभा, सम्भावयन्तीष्वमराङ्गनासु। रोषादिवान्तर्दहनं प्रविश्य, द्रवीभवत्येव भुवः सुवर्णम् ॥२६॥ अर्थ :- हे नाथ! देवाङ्गनाओं के सुवर्णभूषणों से मेरे अङ्ग की शोभा करने पर पृथिवी का स्वर्ण अग्नि में प्रवेश कर मानों रोष से ही पिघलता है। पयः प्रभो नित्यममर्त्यधेनोः, श्रीकोशतो दिव्यदुकूलमाला। पुष्पं फलं चामरभूरुहेभ्यः, सदैव देवैरुपनीयते मे ॥ २७॥ अर्थ :- हे प्रभो ! देवों के द्वारा नित्य कामधेनु से दूध, लक्ष्मी के कोश से दिव्य रोशनी माला और कल्पवृक्षों से पुष्प तथा फल मेरे लिए लाए जाते हैं। भोगेषु मानव्यपि मानवीनां, स्वामिन्न बध्नामि कदाचिदास्थाम्। अहं त्वदीयेत्यनिशं सुरीभिः, स्वर्भोगभङ्गीष्वभिकीकृताङ्गी ॥२८॥ (११७) [जैन कुमारसम्भव महाकाव्य, सर्ग-८] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002679
Book TitleJain Kumarsambhava Mahakavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayshekharsuri
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2003
Total Pages266
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size12 MB
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