SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 186
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अर्थ :- सुमङ्गला ने स्वप्नों के मनोज्ञ विचार रूप मार्ग में दौड़ते हुए चित्त रूपी अश्व को इस प्रकार विचार रूपी लगाम से विघ्नरहित जैसे हो उस प्रकार निश्चल कर दिया। नाना न केवलं वामा, वामाबुद्धिगुणेष्वपि। ऊहे स्फुरन्ति सदृष्टि-लालसे नालसेक्षणाः॥६१॥ अर्थ :- स्त्रियाँ केवल नाम से ही वामा - प्रतिकूल नहीं होती है, अपितु बुद्धि के गुणों में भी वामा होती हैं। जिनकी दृष्टि अलसाई है, ऐसी स्त्रियाँ प्रशस्य लोचन के मार्ग रूप विचार में समर्थ नहीं होती हैं। कटीरस्तनभारेण, यासां मन्दः पदक्रमः। तासां विचारसामर्थ्य , स्त्रीणां संगच्छते कथम्॥६२॥ अर्थ :- जिन स्त्रियों का कटीतट और स्तन के भार से चरण विन्यास (पद-विन्यास) मन्द है, उन स्त्रियों का विचार सामर्थ्य कैसे घटित होता है? स्थूलस्तनस्थलं दृष्ट्वा, हृदयं हरिणीदृशाम्। त्रस्यता यानहंसेन, भारती नीयतेऽन्यतः॥ ६३॥ अर्थ :- स्त्रियों के स्थूल स्तनस्थल को देखकर डरने वाले वाहन रूप हंस के द्वारा सरस्वती अन्यत्र ले जायी जाती है। विशेष :- राजहंसों की स्थल पर प्रायः स्थिति नहीं होती है। हारेऽनुस्तनवल्मीकं , महाभोगिनि वीक्षिते। आसीदति कुलायेच्छुः, स्त्रीणां धीविष्करी कथम् ॥६४॥ अर्थ :- नीड़ की इच्छुक (कुल की निरूपद्रता के इच्छुक) बुद्धि रूपी पक्षिणी स्त्रियों के स्तन रूप कोटर को (देखकर) पश्चात् उसमें महासर्प को देखकर (या महाविस्तार रूप हार को देखकर) कैसे समीपवर्तिनी होती है? मन्ये मोहमयः सर्गः, स्त्रीषु धात्रा समर्थितः। यान्ति यत्तदभिष्वङ्गा-न्मूढतां तात्त्विका अपि॥६५॥ अर्थ :- मैं तो यह मानता हूँ कि विधाता ने स्त्रियों में मोहमयी सृष्टि की जो कि उनकी आसक्ति से विद्वान् भी मूढ़ता को प्राप्त हो जाते हैं। जातौ नः किल मुख्याश्रीः, सापि गोपालवल्लभा। जातं जलात्कलाधार-द्विष्टं शिश्राय पुष्करम्॥६६॥ अर्थ :- हमारे उत्पन्न होने पर जो लक्ष्मी मुख्य है, वह भी पशुपाल (कृष्ण) की [जैन कुमारसम्भव महाकाव्य, सर्ग-७] (१०९) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002679
Book TitleJain Kumarsambhava Mahakavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayshekharsuri
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2003
Total Pages266
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy