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________________ अर्थ सूर्य ने प्रवास पर जाते हुए द्रव्य अथवा तेज देकर अन्धकार को रोकने के लिए जिन दीप रूप सेवकों को पृथिवी पर व्यापारित किया। उन दीप रूप भृत्यों से अपने नाथ सूर्य के नाम का उपहास कराने वाले, हाय, पतङ्गे ( शलभ) मारे गए। यत्कोकयुग्मस्य वियोगवह्निर्जज्वाल मित्रेऽस्तमिते निशादौ । सोद्योतखद्योतकुलस्फुलिङ्गं, तद्धूमराजिः किमिदं तमिस्रम् ॥ ११ ॥ -: अर्थ :जिस चक्रवाकमिथुन की रात्रि के आदि में सूर्य के अस्त हो जाने पर वियोग रूपी अग्नि जली । यह उद्योग सहित खद्योत का समूह जिसमें चिंगारी है, ऐसा अन्धकार क्या धुयें का समूह नहीं है ? अवेत्य पाटच्चरपांसुलानां तमोबलाद्दुर्ललितानि तानि । , प्रभां दिशीन्द्रस्य तमोऽपनोदा-मदीदृशत् स्वोदयचिह्न मिन्दुः ॥ १२ ॥ अर्थ : तस्कर और असतियों के तमोबल से उन दुश्चेष्टाओं को जानकर चन्द्रमा ने पूर्व दिशा में अन्धकार को दूर करने वाली, अपने उदय की चिह्न स्वरूप प्रभा दिखला दी । धामेदमौत्पातिक मानलं वेत्यूहं वितन्वत्यसतीसमूहे । उदीतमेवैक्षत चन्द्रबिम्बं पूर्वांबुधेः कोकनदश्रि लोकः ॥ १३ ॥ : , अर्थ :असती स्त्रियों के समूह में क्या यह उत्पातकारी अथवा अग्नि सम्बन्धी तेज है, ऐसा विचार करते हुए पूर्व समुद्र से उदय प्राप्त रक्त कमल के समान शोभा वाले चन्द्रबिम्ब को लोगों ने देखा । सुधानिधानं मृगपत्रलेखं, शुभ्रांशुकुम्भं शिरसा दधाना । कौसुम्भवस्त्रायितचान्द्ररागा, प्राची जगन्मङ्गलदा तदाभूत् ॥ १४ ॥ अर्थ :चन्द्रकलश को सिर पर धारण की हुई, कौसुम्भ वस्त्र के समान जिसका चन्द्र सम्बन्धी राग आचरित है, अमृत का निधान, मृत रूप लता वाली पूर्व दिशा तब संसार को मङ्गलदायिनी हुई। सांराविणं राजकरोपनीत पीयूषपानैर्विहितं चकोरैः । भास्वद्विरोकापगमाप्तशोकाः, कोकाः क्षतक्षारमिवान्वभूवन् ॥ १५ ॥ अर्थ :चन्द्रमा (अथवा राजा) की किरणों से (अथवा हाथ से) पास लाए हुए अमृत के पीने से चकोरों से किए गए कोलाहल को सूर्य की किरणों के विनाश से प्राप्त शोक वाले चक्रवाक् पक्षी घाव पर नमक छिड़कने के समान अनुभव करने लगे । `तमस्सु राज्ञा स्वमयूखदण्डै- र्विखंड्यमानेष्वदयं तमो यत् । तमेव भेजे शरणं शरण्यं, लक्ष्माभिधां किं तदलम्भि लोकैः ॥ १६॥ [ जैन कुमारसम्भव महाकाव्य, सर्ग-६ ] Jain Education International For Private & Personal Use Only (८७) www.jainelibrary.org
SR No.002679
Book TitleJain Kumarsambhava Mahakavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayshekharsuri
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2003
Total Pages266
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size12 MB
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