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________________ कालीयमालीय गिरेगुहासु, भास्वद्भयेनाह्नि निशा तदस्ते। भूबद्धखेलाखिलवस्तु काली-चकार कालेन विना व शक्तिः॥५॥ अर्थ :- इस काली रात्रि ने दिन में सूर्य के भय से पर्वत की गुफाओं में छिपकर सूर्य के अस्त होने पर पृथिवी पर क्रीडा कर समस्त वस्तु को काली बना दिया। काल (समय) के बिना शक्ति कहाँ? अर्थात् कहीं भी नहीं है। कुमुद्वतीं चाकृत रोहिणीं च, प्रिये निशां वीक्ष्य शितिं सितांशुः। श्रियं च तेजश्च तयोर्ददाना, साधत्त साधु क्षणदेति नाम॥६॥ अर्थ :- चन्द्रमा ने काली रात्रि देखकर कुमुदिनी और रोहिणी को अपनी प्रिया बना लिया। रात्रि ने कुमुदिनी और रोहिणी की शोभा को और अधिक तेज प्रदान करते हुए क्षणदा (उत्सव को देने वाली) यह नाम ठीक ही धारण कर लिया। हरिद्रयेयं यदभित्रनामा, बभूव गौर्येव निशा ततः प्राक् । सन्तापयन्ती तु सतीरनाथा-स्तच्छापदग्धाजनि कालकाया॥ ७॥ अर्थ :- जिस कारण यह रात्रि हरिद्रा के साथ सदृश नाम वाली है (नाम माला में हरिद्रा कांचनी पीता निशाख्या वरवर्णिनी इत्यादि) अतः पहले गौरवर्ण वाली हुई, यह जाना जाता है। पुन: अनाथ सतियों को सन्तापित करती हुई उनके शाप से जलकर काले शरीर वाली हो गई। किं योगिनीयं धृतनीलकन्था, तमस्विनी तारकशंखभूषा। वर्णव्यवस्थामवधूय सर्वा-मभेदवादं जगतस्ततान॥ ८॥ अर्थ :- नीले कंथे को धारण की हुई, तारागण ही जिसके शंख सदृश आभूषण हैं ऐसी यह रात्रि क्या योगिनी है? जिसने विश्व की समस्त ब्राह्मण आदि वर्णों अथवा श्वेत कृष्णादि वर्गों की व्यवस्था को छोड़कर अभेदवाद का विस्तार किया। तितांसति श्वैत्यमिहेन्दुरस्य, जाया निशा दित्सति कालिमानम्। अहो कलत्रं हृदयानुयायि, कलानिधीनामपि भाग्यलभ्यम्॥९॥ अर्थ :- चन्द्र इस संसार में धवलता का विस्तार करने की इच्छा करता है। इसकी पत्नी निशा कालिमा को देना चाहती है। ओह! हृदय का अनुसरण करने वाली स्त्री कलानिधियों को भी भाग्य से लभ्य होती है। दत्त्वा पतङ्गः प्रवसन् वसु स्वं, तमो निरोधैं भुवि यान्ययुक्त। तैर्दीपभृत्यैर्निजनाथनाम-विडम्बिनो हन्त हताः पतङ्गाः॥ १०॥ (८६) [जैन कुमारसम्भव महाकाव्य, सर्ग-६] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002679
Book TitleJain Kumarsambhava Mahakavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayshekharsuri
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2003
Total Pages266
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size12 MB
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