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________________ उपात्तपाणिस्त्रिदशेन वल्लभा, श्रमाकुलाकाचिदुदञ्चिकञ्चका। वृषस्य या चाटुशतानि तन्वती, जगाम तस्यैव गतस्य विघ्नताम्॥१०॥ अर्थ :- कोई देवाङ्गना मैथुन की इच्छा से सैंकड़ों चाटुकारियों को करती हुई (जिसका कञ्चुक सुशोभित हो रहा है तथा जो श्रम से आकुल है एवं जिसका पाणिग्रहण किया गया है, ऐसी वह) उसी देव के गमन में विघ्रपने को प्राप्त हुई। पुरस्सरीभूय मनाक् प्रमादिनं, क्वचित् कृषन्तीष्वमरीषु वल्लभम्। विशां वशाः स्युः पथि पादश्रृंखला, इति श्रुतिं केऽपि वृथैव मेनिरे॥११॥ अर्थ :- देवाङ्गनाओं में कुछ प्रमाद करने वाले पति के आगे होकर बलात् खींचने वाली होने पर 'क्या स्त्रियाँ मार्ग में पुरुषों की पादबन्धन होती हैं, इस प्रकार की श्रुति को कुछ देवों ने वृथा माना। दिवो भुवश्चान्तरलङ्गतागतैरवाहि योऽध्वा त्रिदशैरनेकशः। धुदण्डकत्वेन स एव विश्रुतः, प्रपद्यतऽद्यापि नभोऽब्धिसेतुताम्॥१२॥ अर्थ :- देवों ने स्वर्ग के और पृथिवी के मध्य में अत्यधिक गमनागमनों से जो मार्ग अनेक बार वाहित किया वही मार्ग द्युदण्डक के रूप में विख्यात होकर आज भी आकाश रूपी समुद्र के सेतुबन्धपने को प्राप्त होता है। जनिर्जिनस्याजनि यत्र सा मही, महीयसी नः प्रतिभाति देवता। इतीव देवा भुवमागता अपि, क्रमैन संपस्पृशुरेव तां निजैः॥१३॥ अर्थ :- जहाँ भगवान् ऋषभदेव का जन्म हुआ, वह पृथिवी हम लोगों को बहुत बड़ी देवी प्रतीत होती है (उसका चरणों से कैसे स्पर्श करें) मानों ऐसा मानकर क्या देवों ने भूमि पर आकर भी अपने चरणों से भूमि का स्पर्श नहीं किया। मुहूर्तमासीदति किं बिडौजसां, प्रमादितेत्युगिरि नाकिमण्डले। विमानमानञ्ज तमञ्जसावरं, वरेण्यतैलैः प्रथमः पुरन्दरः॥ १४॥ अर्थ :- क्या मुहूर्त आसन्न है? क्या इन्द्र प्रमाद कर रहे हैं? इस प्रकार देव समूह के कहने पर प्रथम इन्द्र ने श्रेष्ठ तेलों से उस वर को सम्पूर्ण रूप से वह निरहंकार हो जाय उस प्रकार से तैल मर्दन किया। तनूस्तदीया पटवासकैरभा-द्विशेषतः शोषिततैलताण्डवा। अकृत्रिमज्योतिरमित्रमत्र न, स्निहिक्रिया स्याद् बहिरङ्गगापि किम्॥१५॥ [जैन कुमारसम्भव महाकाव्य, सर्ग-४] (५३) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002679
Book TitleJain Kumarsambhava Mahakavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayshekharsuri
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2003
Total Pages266
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size12 MB
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