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________________ रखा जाता है। इस अवसर पर वह किसी को व्यामोहित नहीं करता है, किन्तु नयनों में प्रविष्ट होते ही कज्जल ने विश्वासघात किया । अग्नि अथवा दुर्जनादि (तापकर) का विश्वास नहीं करना चाहिए, यह भाव है । शची स्वहस्तेन निवेश्य मौलौ, मौलिं मणीनां किरणैर्जटालम् । तयोर्गुणाधिक्यभवं प्रभुत्व-मशेषयोषित्सु दृढीचकार ॥ ७५ ॥ अर्थ :- इन्द्राणी ने अपने हाथ से उन दोनों कन्याओं के सिर पर मणियों की किरणों से व्याप्त मुकुट रखकर समस्त स्त्रियों में गुणों की अधिकता से प्रभुत्व को दृढ़ किया । पारे शिरोजतमसामुदियाय भाले, लक्ष्म्या घनावसथतां गमिते तदीये । विक्षिप्तनागजरजोव्रजसांध्यराग-संकीर्णसीनि तरणिस्तिलकच्छलेन ॥ ७६ ॥ अर्थ :सूर्य उन दोनों कन्याओं की शोभा से दृढ़स्थानकला को प्राप्त विस्तारित हाथियों से उड़ायी हुई धूलि समूह से सन्ध्याकालीन लालिमा से व्याप्त पर्यन्त देश वाले प्रकाश की किरण रूप तिलक के बहाने से मस्तक पर केश रूप अन्धकार के पार उदित हुआ । यच्चाक्रिकभ्रमिदिनाधिपतापवह्नि सेवापयोवहनमुख्यमसोढकष्टम् । पुण्येन तेन तदुरोरुहतामवाप्य, कुम्भो बभाज मणिहारमयोपहारम् ॥ ७७ ॥ अर्थ :- चूँकि कुम्भ ने कुलाल के परिभ्रम रूप सूर्य के सन्ताप रूपी अग्नि का सेवन बल तथा जल को ले जाना जिसमें मुख्य है, ऐसे कष्ट को सहन किया, उस पुण्य से उन कन्याओं के स्तनत्व को प्राप्त कर मणिमय हार रूप उपहार का सेवन किया । - येतयोरशुभतां करणमूले, काममोहभटयोः कटके ते। अङ्गुलीषु सुषमामददुर्या, ऊर्मिका ननु भवाम्बुनिधेस्ताः ॥ ७८ ॥ जो दो कड़े उन दोनों कन्याओं के करमूल में शोभित हुए वे काम और मोहभट के सैन्य जानना चाहिए। जिन मुद्रिकाओं ने उन कन्याओं की अङ्गुलियों को सुशोभित किया, निश्चित रूप से वे संसार समुद्र की लहरें जानना चाहिए । अर्थ : बाह्या त्रिभुवनविजिगीषोर्मारभूपस्य ऽवनिरजनि विशाला तन्नितम्बस्थलीयम् । व्यरचि यदिह काञ्ची किंकिणीभिः प्रवल्गच्चतुरतुरगभूषाघर्घरीघोषशंका ॥ ७९॥ अर्थ :यह उन दोनों कन्याओं की - नितम्बस्थली तीनों भुवनों को जीतने के इच्छुक कामदेव रूप राजा की अश्ववाहनिका भूमि हुई; क्योंकि नितम्बस्थली में मेखला की [ जैन कुमारसम्भव महाकाव्य, सर्ग - ३ ] (४९) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002679
Book TitleJain Kumarsambhava Mahakavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayshekharsuri
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2003
Total Pages266
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size12 MB
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