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________________ अर्थ :- अनन्तर इन्द्र की प्रिया शची की निपुण सखियों ने संस्कार करने को । अभिलाषा से पृथिवी की अद्वितीय रत्न सुमङ्गला और सुनन्दा को सुवर्ण के आसन पर बैठाकर इसकी रत्नासन आख्या दी। उभे प्रभौ स्नेहरसानुविद्धे, स्नेहैः समभ्यज्य च संस्नपय्य। लावण्यपुण्ये अपि भक्तितस्ता, न स्वश्रयेऽमंसत पौनरुक्त्यम्॥६१॥ अर्थ :- श्री ऋषभदेव के प्रेम रस में व्याप्त तथा सौन्दर्य से पवित्र होने पर भी दोनों कन्याओं को तेल लगाकर तथा स्नान कराकर उन सखियों ने भक्ति से अपने श्रम की पुनरुक्ति नहीं मानी। विशेष :- वे दोनों कन्यायें पहले से प्रभु के प्रति प्रेमरस से (अथवा तेल से) व्याप्त थीं तथा लावण्य से पवित्र थीं पुनः स्नेह (तेल) से अनुविद्ध करने पुनरुक्ति होगी, किन्तु भक्तिभाव के कारण यहाँ पुनरुक्ति नहीं मानी जाएगी। स्नेह का अर्थ तेल तथा प्रेम दोनों होता है। तृषातुरेणेव पटेन चान्त-स्त्रानीयपानीयलवे जवेन। स्फुरन्मयूखे निभृते क्षणं ते, सुवर्णपुत्र्योः श्रियमन्वभूताम्॥६२॥ अर्थ :- वेगपूर्वक मानो प्यास से आकुल हों, इस प्रकार वस्त्र से ग्रसित किया है स्नान के योग्य जल को जिन्होंने तथा निश्चल किरणें जिनसे निकल रही हैं ऐसी दोनों कन्याओं ने एक क्षण में सुवर्ण पुत्रियों की शोभा का अनुभव किया। सगोत्रयोर्मूर्ध्नि तयोरुदीय, नितम्बचुम्बी चिकुरौघमेघः। वर्षन् गलन्नीरमिषान्मुखाब्जा-न्यस्मेरयच्चित्रमवेक्षकाणाम्॥ ६३॥ अर्थ :- सुमङ्गला और सुनन्दा के (जिनके समान गोत्र हैं) नितम्ब का स्पर्श करने वाला (प्रधान पर्वत के) मस्तक पर उदित होकर (अथवा मेखला का स्पर्श करने वाला) आश्चर्य है केशों का समूह रूप मेघ गिरते हुए नीर के बहाने से वर्षता हुआ देखने वालों के मुखकमलों को विकसित करता था। धम्मिल्लमल्लोऽधिगतस्मरास्त्र-मालोऽन्तरालोल्लसितप्रसूनैः। तन्मौलिवासाद् बलवान्न कस्य, बलीयसोऽप्येजयति स्म चेतः॥६४॥ अर्थ :- मध्य में जिसके फूल खिल रहे हैं तथा जिसने काम के अस्त्रों की माला प्राप्त की है ऐसा बद्धकेशकलाप रूपी मल्ल किसके बलवान् भी चित्त को कम्पित नहीं करता है। (४६) [जैन कुमारसम्भव महाकाव्य, सर्ग-३] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002679
Book TitleJain Kumarsambhava Mahakavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayshekharsuri
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2003
Total Pages266
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size12 MB
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