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________________ स्वरङ्गणेऽकारि चिरं स्वरङ्गा-द्यो रम्भया नृत्यपरिश्रमः प्राक्। अग्रेभवत्सम्भविता तदानी-मभ्यासलभ्या फलसिद्धिरस्य ॥ ३२॥ अर्थ :- रम्भा नामक देवाङ्गना ने स्वर्ग के आँगन में जो नृत्य के योग्य परिश्रम पहले चिरकाल तक किया। इस श्रम की अभ्यास से प्राप्त करने योग्य फल की सिद्धि पाणिग्रहण के क्षण आपके आगे होगी। त्वत्तः प्रभोः स्वासहनात्यलाय्य, रागः श्रितस्तुम्बरुनारदादीन्। गुणावलीगानमिषेण देव, तदा तदास्यात्तव संगसीष्ट॥ ३३॥ अर्थ :- हे देव! अपने समर्थ शत्रु से भागकर तुम्बरु और नारद आदि को जिसने आश्रय लिया है ऐसा राग उस अवसर पर तुम्बरु नारदादि के मुख से गुणों के समूह के गान के बहाने से तुम्हारे सान्निध्य को प्राप्त हो जाय। एवं विवाहे तव हेतवः स्यु-रन्येऽपि भावाभुवनप्रसत्तेः। यथोचित्तं तत्प्रविधेहि धीम-नितीरयित्वा विरराम वजी॥ ३४॥ अर्थ :- हे नाथ! इस प्रकार अन्य भी भाव आपके विवाह में तीनों भुवनों में सौख्य के कारण हों। अतः हे धीमन् यथायोग्य कार्य करो। इन्द्र इस प्रकार कहकर निवृत्त हो गया। स्वं भोगकर्माथ विपाककाल्यं, जानन्नजोषिष्ट जिनः सजोषम्। अतात्त्विके कर्मणि धीरचित्ताः, प्रायेण नोत्फुल्लमुखी भवन्ति ॥३५॥ अर्थ :- अनन्तर अपने भोगकर्म के विपाक के काल के योग्य कर्म को जानते हुए भगवान् ने मौन का सेवन किया। धीरचित्त अतात्त्विक कर्म में प्रायः प्रहसित मुख नहीं होते हैं। इन्द्रोऽवसाय व्यवसायसिद्धिं, स्वस्येङ्गितैर्भागवतैस्तुतोष। भृत्यो हि भर्तुः किल कालवेदी, नेदीयसीं वाक्फलसिद्धिमेति ॥३६॥ अर्थ :- इन्द्र भगवान् सम्बन्धी चेष्टाओं से अपने उपक्रम की सिद्धि जानकर सन्तुष्ट हुआ। निश्चित रूप से स्वामी के अवसर को जानने वाला सेवक समीपवर्तिनी वाणी के फल की सिद्धि को प्राप्त करता है। जग्राह वीवाहमहाय मंक्षु, मुहूर्तमासन्नमथो महेन्द्रः। अवत्सरायन्त यदन्तरस्था, लेखेषु हल्लेखिषु काललेशाः ॥ ३७॥ अर्थ :- अनन्तर इन्द्र ने शीघ्र ही विवाहोत्सव के लिए समीपवर्ती मुहूर्त ग्रहण किया। हृदय को लिखने वाले लेखों में मुहूर्त के अन्तराल में स्थित काल के लेश वर्ष के समान आचरण करते थे। [जैन कुमारसम्भव महाकाव्य, सर्ग-३] (४१) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002679
Book TitleJain Kumarsambhava Mahakavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayshekharsuri
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2003
Total Pages266
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size12 MB
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