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परिचय |
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जो लोग आत्माके अस्तित्त्वको स्वीकार नहीं करते उन्हें यदि आत्मा पर विश्वास हो जाय तो उनका एक बात पर खास ध्यान आकर्षित किया जाता है । वह बात यह है कि मोक्ष जानेके लिए जो चौदह गुणस्थानोंका क्रम बतलाया गया है उनमें तेरहवें गुणस्थानमें आत्मा केवलज्ञान लाभ करता है । श्रीमद् राजचंद्रने इस बातको स्वीकार किया है कि मुझे अभी 1 कुछ भव और धारण करना है और इसी प्रकार प्रसंग प्रसंग पर वे यह भी बतला आये हैं कि मुझे अभी पूर्णपदकी प्राप्ति नहीं हुई है । और यही बात हम पहले उस जगह भी कह आये हैं जहाँ उन्होंने यह कहा है कि वेदान्त और अन्य दर्शनोंसे श्रीजिनका कहा हुआ आत्म-स्वरूप बहुधा अविरोधी है । इसके सिवाय वे गुणस्थान- कमारोह करते हुए मी कहते हैं:
जे पद श्रीसर्वज्ञे दी ज्ञानमां,
कही शक्या नहिं पण ते श्रीभगवान जो;
तेह स्वरूपने अन्यवाणी ते शुं कहे, अनुभव गोचर मात्र रहुँ ते ज्ञान जो । अपूर्व अवसर क्यारे आवशे, क्यारे थईशुं बाह्याभ्यन्तर निर्बंथ जो ॥
ए परमपद प्राप्तिनुं कथं ध्यान में,
गंजा वगर ते हाल मनोरथ रूप जो;
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