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श्रीमदू राजचन्द्र
वह प्रसंग आज बार बार स्मरणमें आ रहा है । वहाँ सहस्र दलका कमल है; और आदिपुरुष भगवान वासुदेव उसमें विराजमान हैं। इनकी प्राप्ति जब किसी सत्पुरुषकी चित्त-रूपी गोपीको हो जाती है तब वह उपदेशिका बन कर अन्य मुमुक्षु आत्मासे कहती है कि कोई माधवको खरीदो, कोई माधवको खरीदो।" अर्थात् वह कहती है कि आदि-पुरुषकी मुझे प्राप्ति हो गई है और यही एक प्राप्त करने योग्य है; अन्य कुछ भी प्राप्त करने योग्य नहीं है, इस लिए उसे ही प्राप्त करो। वह आनन्दमें मस्त होकर बार बार कहती है कि "तुम उस पुराणपुरुषको प्राप्त करो; और यदि उसे प्राप्त करनेकी तुम्हें अचल प्रेमसे चाह हो तो मैं उस आदि-पुरुषका लाभ करा सकती हूँ। मटकीमें रख कर उसे बेचनको निकली हूँ, ग्राहक देख कर बेच दूंगी। कोई ग्राहक बनो; अचल प्रेमसे कोई ग्राहक बनो । मैं उसे वासुदेवकी प्राप्ति करादूंगी" मटकीमें रख कर बेचनेके लिए निकलनेका अर्थ है 'सहस्रदल वाले कमलमें विराजे हुए भगवान् वासुदेव' । महीकी केवल कल्पना मात्र है। सारी सृष्टिको मथ कर जो मही निकाला जाय तो वह अमृतरूप भगवान वासुदेव हीके रूपमें निकलेगा । ऐसे सूक्ष्म-रूपको स्थूल-रूप देख कर व्यासजीने अद्भुत भक्तिका गान किया है । यह कथा तथा सारी भागवत ये दोनों एकहीकी प्राप्ति करानेके लिए अक्षर अक्षरसे भरी हुई हैं, और यह बात बहुत समय पहलेहीसे मेरी समझमें आ चुकी है।"
ऐसे अनेक लेख और विचार 'श्रीमद् राजचंद्र' नामक ग्रन्थ परसे जाने जा सकते हैं । इन लेखों और विचारोंका अवलोकन किये बाद
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