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________________ परिचय । ४५ रोग बहुत शान्त हो गया है । सर्वथा शान्त हो जाने पर वहाँ जानेका विचार है। आपके प्रतापसे धन कमानेका लोभ नहीं है, किन्तु आत्मकल्याण करनेकी परम इच्छा है । माताजीसे मेरा पालागन कहिए। बालक राजचंद्रका पालागन ।" इस पत्र परसे स्पष्ट जाना जा सकता है कि सांसारिक काम-काज करते रहने पर भी उनकी आत्माकी ओर कितना तीव्र लक्ष्य था। तत्त्वज्ञानकी कुछ असाधारण बातें। अब श्रीमद् राजचंद्रके तत्त्वज्ञानके सम्बन्धमें कुछ प्रकाश डालना आवश्यक जान पड़ता है। जो आत्मवादी नहीं हैं या यों कह लीजिए कि जो जड़वादी हैं उनका कहना कवि गेटीके जैसा है कि सृष्टिके गूढ रहस्यकी गाँठ कभी नहीं सुलझनेकी है, इस लिए उसके सुलझानेके प्रयत्नमें समय बरबाद करना उचित नहीं है। इस जड़वादका पृथक्करण किया जाय तो इसका यह मतलब निकलेगा कि जो लोग आत्माकी खोजके प्रयतमें लगे रहते हैं वह उनका भ्रम है; और इसी भ्रमके कारण ऐसे लोगोंने तत्त्वज्ञान और धर्मज्ञानका एक बड़ा भारी जाल खड़ा कर दिया है। उनकी दृष्टिके अनुसार इस चरित्रके नायककी भी गणना ऐसे ही भ्रममें पड़े हुए लोगोंमें की जा सकेगी । परन्तु यदि जड़वादको माननेवाले चरित्र-नायककी वृत्तिका सूक्ष्म दृष्टिसे परिशीलन करें तो उन्हें मान लेना पड़ेगा कि श्रीमद् राजचंद्र भ्रममें पड़े हुए न थे; किन्तु खुद वे ही भूलमें पड़े हुए हैं। कारण जिन विचारोंके आधार पर जड़वादी लोग विचार करते हैं श्रीमद् Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002678
Book TitleAtmasiddhi in Hindi and Sanskrit
Original Sutra AuthorShrimad Rajchandra
AuthorUdaylal Kasliwal, Bechardas Doshi
PublisherMansukhlal Mehta Mumbai
Publication Year
Total Pages226
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Soul, Spiritual, & Rajchandra
File Size9 MB
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