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श्रीमद् राजचन्द्र
"तुम्हारा पत्र कल मिला । उसमें नं० १७७ के बेंचान तथा ता० २४-१-८२ वगैरहकी जो खरीदी लिखी वह पढ़ी । तथा सीरी ( एक जातिके छोटे मोती) और भूके ( सीरी जातिके मोतियोंसे भी छोटे मोती) की जो खरीदी लिखी वह भी पढ़ी । परन्तु तुमने यह ठीक नहीं लिखा कि वह सीरी-भूका अरबस्थानके किस व्यापारीका तथा किस प्रान्तका है । इस कारण इस विषयमें अधिक लिखना कठिन है । परन्तु इतना अनुमान किया जा सकता है गत वर्षकी भाँति सुरा (एक प्रकारके मोती) का १५-१६-१७-१८-१९ का भाव कहीं पढ़ने में नहीं आया। ऐसे ऊँचे भावकी खरीदी पर विलायतवालोंसे उसके पूरे दाम लेनेमें बड़ी कठिनता पड़ेगी । यह संभव है कि मौके पर भूकेमें लाभ हो, पर सीरीके लिए तो सन्देह है । इसके सिवाय इस समय हुंडीका भाव भी कुछ बढ़ गया है। गत वर्षकी अपेक्षा सीरी अच्छी हो तो भी दस-पन्द्रह टके चढ़ने उतरने पर तो मुद्दल दामोंके ही उठनेकी आशा है। कितनी बार आगेके परिणाम पर बिना विचार किये ही प्रायः खरीदी करली जाती है । किसी मालमें विलायतके हिसाबसे ठीक पड़ती पड़ जाती है और इसी कारण फिर दूसरे मालमें भी ऊँचे दामोंके आनेकी आशासे भाव बढ़ा कर माल खरीदा जाती है । और इस तरह सदा ऊँचे भाव पर ही ध्यान रहता है । इससे डर बना रहता है कि इस रीतिसे तो मौके पर गत वर्षकी भाँति इस वर्षका भी व्यापार केवल बेगार करनेके जैसा होगा।
यहाँ बैठे रह कर कुछ लिखना योग्य नहीं जान पड़ता । अब शीघ्र ही आनेका विचार है, इस लिए अधिक लिखनेका कोई कारण भी नहीं है।
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