SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 47
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३० श्रीमद् राजचन्द्र वह कुछ कम दाम लेता है । इस लिए यदि उसके यहाँ भीमजी वल्लजीके जैसा ही माल मिले तो अच्छी तरह देख-भाल कर खरीद करना । और भीमजी वल्लभजीका तथा उस खत्रीका एक ही भाव हो तो जिसके यहाँ अच्छा माल मिले उसके यहाँसे लेना । यह बात ध्यानमें रखना कि ग्राहक लोग ओढ़नियों पर आना दो-आना भी ज्यादा देनेमें हिचकिचाने लगते हैं। रेशमी साटनके थान वे मँगावें तो उनका रंग, उनकी चमक, मुलायमता आदि अच्छी होगी तो ही वे उनके वहाँ चल सकेंगे। वे १२ डीके मार्केके हों । अथवा वख्त पर रुपया ज्यादा भी लगे तो उसकी परवा न करना, पर अच्छे माके देख कर खरीदना । बीस या इक्कीस तक जो भाव उन्होंने लिखा हो उसी अन्दाजके खरीदना । रेशमी अतलश कुछ रंगाना हो तो भाई अमृतलाल जहाँ कहे वहीं रँगाना । उस पर रंग, आदि ठीक आवे वैसा करना । संघवी घेला बालजीने मुझसे कहा कि हमें बम्बईसे कपड़ा मँगवाना है और तुम तो वहाँ नहीं हो, इस लिए संभव है माल ठीक समय पर न आ सके । इसके उत्तरमें मैंने उनसे कह दिया है कि मेरे न रहने पर भी आपको माल मँगानेमें कोई अड़चन न होगी । वहाँ मेरी अपेक्षा भी अच्छा काम हो सकेगा । भाई अमृतलालके भरोसे पर यह उत्तर दिया गया है । इस कारण अमृतलालको साथ लेजा कर माल खरीद करना । काम वैसा ही करना जिससे मँगानेवालेको सन्तोष हो सके । एक छोटीसी बातके लिए जो इतना लिखा है इसका कारण यह है कि रेशमी कपड़ेमें जरा भी ज्यादा-कम हो तो उससे माल मँगाने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002678
Book TitleAtmasiddhi in Hindi and Sanskrit
Original Sutra AuthorShrimad Rajchandra
AuthorUdaylal Kasliwal, Bechardas Doshi
PublisherMansukhlal Mehta Mumbai
Publication Year
Total Pages226
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Soul, Spiritual, & Rajchandra
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy